पड़ोसन आंटी ने मुझसे चुदने के लिए जाल बिछाया

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यह आंटी की पेंटी सेक्स कहानी मेरी पड़ोसन आंटी की है. एक बार मैंने आंटी की पेंटी बाहर सूखती देखी. तो वासनावश मैंने वो पैंटी चुरा ली. उसके बाद क्या हुआ?

दोस्तो, मेरा नाम गौरव है.
मैं सांगली, महाराष्ट्र का रहने वाला हूँ.

मेरा कद करीब छह फीट का है. मेरा शरीर काफ़ी मजबूत है. मेरा लंड भी काफ़ी तगड़ा है. लंड की लंबाई अच्छी है और ये तीन इंच मोटा है जो किसी भी औरत की चुत में जाकर हाहाकार मचा सकता है और उसकी प्यास बुझा सकता है.

ये काल्पनिक आंटी की पेंटी सेक्स कहानी दो साल पहले उस समय की है, जब मैं कॉलेज में पढ़ता था.

मैं एक कॉलोनी में रहता था.
ये घर काफ़ी बड़ा था और इस घर में सिर्फ़ मैं अकेला रहता था.

मेरे पिताजी और मां पुणे में रहते थे. पिताजी का वहां जॉब था. चूंकि पापा की तबीयत ठीक नहीं रहती थी इसलिए मां उनके साथ ही रहती थीं.

हमारे पड़ोस में एक परिवार रहता था, उनके घर में चार लोग थे.
उस परिवार के मुखिया चाचा जी का जॉब मुंबई में था तो वो वहीं रहते थे.
उनका बेटा भी पुणे में जॉब करता था. घर में बस मां और बेटी अकेले रहते थे.

उन दोनों को देखकर मुझे बड़ा सेक्स चढ़ता था और मुठ मारने का मन करता था.

आंटी का नाम वेदिका था. उनकी उम्र 42 साल की थी लेकिन दिखने में वो तीस जैसी थी. आंटी का फिगर काफ़ी सेक्सी था.
उनके दूध बहुत बड़े और गदराए हुए थे. उनकी गांड का तो जवाब नहीं था. एकदम गोल और टाईट गांड को थिरकते देख कर मेरा जी काबू में ही नहीं रहता था.

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एक दिन मैं घर के बाहर बैठा था तो मैंने देखा कि आंटी और उनकी बेटी कहीं बाहर जा रही थीं.
हमारे घरों के बीच कोई ज्यादा गैप नहीं था, कोई भी आसानी से छलांग लगाकर जा सकता था.

मैं पानी पीने के लिए किचन में गया, तो देखा कि आंटी ने ब्रा और चड्डी बाहर सूखने के लिए डाली हुई थी.

वैसे तो वो हमेशा अपने कपड़े अपनी छत पर ही सुखाती थीं. लेकिन आज उनकी चड्डी देखकर मुझे उसमें मुठ मारने का मन करने लगा.
मैंने सोचा कि इससे अच्छा मौका मुझे फिर शायद कभी ना मिले.

इसलिए मैंने छलांग लगाई और उनके घर में आ गया. मैं उनकी ब्रा और चड्डी चुराकर ले आया.

मैं आंटी की ब्रा पैंटी ले तो आया, मगर फिर घबरा गया कि कहीं आंटी को पता ना चल जाए कि मैंने उनकी चड्डी चुराई है.

फिर मैंने उनकी चड्डी को सूंघा, तो उनकी पैंटी की महक ने मुझे पागल सा कर दिया.
उनकी चूत की खुशबू मेरे रग रग में दौड़ने लगी.

मेरा लंड मेरी पैंट में तंबू बनाकर खड़ा हो गया.

मैंने अपना लंड निकाला और उनकी चड्डी से लपेटकर जोर जोर से रगड़ने कर पेंटी सेक्स करने लगा.

करीब दस मिनट के बाद में झड़ने वाला था, तो मैंने मेरा सारा माल उनकी चड्डी पर गिरा दिया.
मेरा आज तक इतना माल कभी नहीं निकला था.

थोड़ी देर बाद मुझे आवाज़ सुनाई दी.
मैंने देखा कि आंटी वापस घर आ गयी थीं.

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मैं घबरा गया कि अब मैं तो गया काम से.
मैंने उनकी चड्डी और ब्रा को बेड के नीचे छुपा दिया और हॉल में जाकर बैठ गया.

थोड़ी देर बाद मैं किचन में गया और देखा कि आंटी अपनी ब्रा और चड्डी ढूँढ रही थीं.

मैं वहीं खिड़की के पास खड़ा होकर देख रहा था.
तभी मुझे आंटी ने देख लिया.
मैं पीछे छुप गया.

थोड़ी देर बाद मुझे आंटी ने पुकार लगाई- गौरव, अरे ओ गौरव!
मैं हॉल में से उठकर बाहर गया- हां आंटी!
वेदिका- हमारे घर पर कोई आया था क्या?
मैं- मुझे नहीं मालूम आंटी. मैं तो अपने बेडरूम में था.
वेदिका- अच्छा ठीक है.

मैं घर में आकर फिर से किचन से देखने लगा.
आंटी ने सारा कंपाउंड खोज लिया और थक हार कर घर में अन्दर चली गईं.

उस दिन मैं उनके घर पर नज़र रखे हुए था कि वहां क्या हो रहा है.

अगले दिन में सुबह उठकर मैं तैयार हो गया और कॉलेज चला गया.

दोपहर को कॉलेज के काम से घर पर आया तो मैंने देखा कि आंटी ने आज दो चड्डियां बाहर सूखने डाली हैं.
मेरा मन फिर से चड्डी चुराने को कर रहा था लेकिन मुझे लगा कि शायद आज आंटी ने जानबूझ कर ऐसा किया होगा ताकि वो पता कर सकें कि किसने उनकी चड्डी चुराई है.

मैं अपना काम छोड़ कर वहीं किचन से देख रहा था कि घर पर कोई है या नहीं.

करीब आधे घंटे तक मैं देखता रहा … लेकिन मुझे कोई आवाज़ सुनाई नहीं दी.

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मुझे लगा शायद आंटी सो गयी होंगी.

मैं हिम्मत जुटाकर फिर से छलांग लगाकर उनके अहाते में गया और चड्डी लेने ही वाला था कि आंटी दरवाजा खोलकर मेरे सामने आ गईं.

मेरी तो डर के मारे फट गयी थी; मुझे कुछ नहीं सूझ रहा था.

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तभी आंटी मेरे पास आ गईं और मेरे हाथ से पैंटी छीन ली.

उन्होंने मुझे एक जोर का तमाचा दे मारा- शर्म नहीं आती ऐसी हरकत करते हुए!
मैं- सॉरी आंटी … ग़लती हो गयी माफ़ कर दो. फिर ऐसा नहीं करूंगा.

वेदिका- तुझे तो मैं छोड़ूँगी नहीं, चल अन्दर!
मैं उनके साथ उनके घर में आ गया.

आंटी ने मुझे दो झापड़ और मारे और बोलीं- मैं अभी तुम्हारे पिताजी और पुलिस को फोन लगाती हूँ.
मैं- प्लीज़ आंटी ऐसा मत करो, मैं आपके पांव पड़ता हूँ. फिर ऐसी ग़लती कभी नहीं करूंगा.

वेदिका- मेरी चुराई हुई चड्डी कहां है? क्या किया तुमने उसका?
मैंने घबराते हुए कहा- वो मैंने मेरे बेडरूम में छुपाई है.

वेदिका- चल, मैं तेरे घर चलती हूँ.
हम दोनों आंटी के घर से निकल कर मेरे घर में आ गए.

वेदिका- कहां है?
मैं- बेडरूम में.

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वेदिका- चलो अन्दर.
हम दोनों मेरे बेडरूम में आ गए.

मैंने उनकी चड्डी बेड के नीचे से निकाली, जिस पर मैंने मुठ मारी थी.

उन्होंने मुझसे चड्डी छीन ली. मेरे वीर्य का दाग उस पर लगा हुआ था, उसे देखते ही उन्होंने चड्डी फेंक दी.

वेदिका- ये क्या किया तुमने … कितने गंदे हो तुम! तुमने मेरी पैंटी में सेक्स किया?
मैं शर्म से बिना कुछ बोले खड़ा था.

वेदिका- अब तो मैं तुम्हें सज़ा ज़रूर दूँगी. कपड़े उतारकर नंगे खड़े हो जाओ.

मैं आंटी की बात सुनकर चौंक गया कि ये क्या बोल रही हैं.

वेदिका- जल्दी उतारो … वरना पुलिस को फोन लगा दूँगी.
मैं पुलिस का नाम सुनकर घबरा गया और अपने कपड़े उतारकर नंगा खड़ा हो गया.

मेरा शरीर और लंड का आकार देखकर आंटी भी चौंक गईं.
उनके चेहरे पर उत्तेजना साफ दिख रही थी.

वेदिका- अब मेरी ब्रा और चड्डी पहनो.
मैंने चुपचाप आंटी की ब्रा और चड्डी पहन ली.

उनका शरीर काफ़ी गदराया था इसलिए मुझे वो ब्रा पैंटी एकदम फिट हो गयी.

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फिर आंटी ने अपना फोन निकाला और मेरी तस्वीरें खींचने लगीं.
मैं अपना मुँह छुपाने लगा, लेकिन उन्होंने फिर से मुझे डर दिखाया.

फिर थोड़ी देर बाद आंटी बोलीं- अब मैं ये तस्वीरें सोशियल मीडिया पर डाल दूँगी, यही तुम्हारी सज़ा होगी.
यह सुनकर मैं उनके पांव पड़ने लगा कि आंटी ऐसा ना करें.
लेकिन वो मानने को तैयार नहीं थीं.

मैं बोला- आप कुछ भी बोलो आंटी, मैं करने के लिए तैयार हूँ.
वो मेरी बात सुनकर एकदम से बोलीं- चोदोगे मुझे?

उनके मुँह से यह बात सुनकर मैं हड़बड़ा गया.
मैं जो चीज़ सोच रहा था, वो मुझे सजा के तौर पर मिलने वाली थी.
मैंने झट से हां बोल दिया.

उन्होंने मुझे बेड पर धक्का देकर लिटा दिया और चड्डी से मेरा लंड निकाल कर उसे चूसने लगीं.

मैं तो कुछ सोच ही नहीं पा रहा था. अभी जो आंटी मुझे पुलिस में सज़ा देने वाली थीं, वो अब मेरा लंड चूस रही थीं.

वेदिका आंटी मेरा लंड जोर जोर से चूस रही थीं.
मेरा लंड कुछ ही समय में पूरा तन चुका था.

आंटी को लंड मुँह में लेने में परेशानी हो रही थी, लेकिन फिर भी वो उसे चूसे जा रही थीं.
उनके थूक से मेरा लंड अब चमकने लगा था.

करीब दस मिनट लंड चूसने के बाद मैं झड़ने वाला हो गया था- आंटी मैं झड़ने वाला हूँ.
वेदिका- घबरा मत … आ जा … मैं सब पी लूँगी.

मैं उनके मुँह में ही झड़ गया.
उन्होंने मेरा सारा माल पी लिया.
फिर हम दोनों बेड पर लेट गए.

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थोड़ी देर बाद मेरा लंड फिर से खड़ा हो गया.
मैंने हिम्मत जुटाकर आंटी से पूछा- आप तो मुझे सज़ा देने वाली थीं, फिर ये सब क्या कर रही हैं?
वेदिका- अरे गौरव, मैं तो तुमसे कब से चुदवाना चाहती थी. मुझे चुदने में बहुत मज़ा आता है, लेकिन मेरे पति अब मुझे चोद ही नहीं पाते हैं. कल मेरी चड्डी तुमने चुराई थी, ये मुझे पता था. मेरे घर पर कैमरा लगा हुआ है. फिर भी मैंने आज मेरी चड्डी बाहर डाली क्योंकि मुझे पता था कि तुम ज़रूर वापस आओगे.

ये कह कर आंटी हंसने लगीं.

मैं- आंटी आप तो बड़ी प्लानिंग करके बैठी थीं.
वेदिका- तू अभी मुझे समझने के लिए बहुत छोटा है … और हां अब से तू मुझे वेदिका बोला कर, आंटी नहीं.

मैं- ओके वेदिका, तो अब चुदने के लिए तैयार हो?
वेदिका- मैं तो कब से तैयार हूँ.

फिर मैं उनके ऊपर चढ़ गया और उनका ब्लाउज निकालने लगा.
मैंने उनके स्तनों को आज़ाद कर दिया, उन्हें दबाने और चूसने लगा.
वेदिका आंटी के मम्मे काफी बड़े और एकदम गोल थे.

फिर मैंने उनका पेटीकोट उठाया और उनकी चड्डी निकाल दी.
उनकी चूत देखकर तो मुझे जन्नत का अहसास होने लगा.

आंटी की चूत गुलाबी रंग की थी और उस पर छोटे छोटे बाल थे.
मैंने उनकी चूत को चाटना शुरू कर दिया.

वो गर्म आवाजें निकालने लगीं- आहह गौरव … जोर से और जोर से करो … आहह आहह!

थोड़ी देर बाद आंटी झड़ गईं.

फिर मैंने उनकी साड़ी और पेटीकोट निकाल दिया.
अब वो मेरे सामने नंगी थीं. वो किसी अप्सरा से कम नहीं लग रही थीं.

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मैंने अपने लंड को उनकी चूत पर सैट कर दिया और जोर का धक्का दे मारा.

मेरा लंड आधा ही अन्दर गया मगर आंटी चीख पड़ीं.
आंटी की चुत ने बहुत दिन लंड नहीं लिया था, इस वजह से उनकी चूत टाइट हो गयी थी.

मैंने फिर से धक्का दे दिया. इस बार मेरा पूरा लंड अन्दर घुस गया.

कुछ देर बाद मैंने अपनी रफ़्तार बढ़ा दी.
अब वो भी मुझे साथ दे रही थीं.

वेदिका- यस गौरव चोदो … आंह और जोर से … फक मी हार्ड गौरव.
मैं- वेदिका तुम मेरे सपनों की रानी हो … आज तो मैं तुम्हें रगड़ दूँगा.

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वेदिका- आह हां चोद दो मेरी जान … आहह आअहह गौरव जोर से पेलो.

करीब बीस मिनट बाद मैं झड़ने वाला था, वो भी फारिग होने वाली थीं.

मैं- वेदिका मैं झड़ने वाला हूँ.
वेदिका- अन्दर ही डाल दो, मेरी चूत की प्यास बुझा दो.

मैं उनकी चूत में झड़ गया और उन पर ही लेटा रहा.

कुछ देर बाद लंड फिर से खड़ा हो गया अबकी बार मैंने आंटी को घोड़ी बनाया और पीछे से लंड अन्दर डाल दिया.

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इस बार मैंने आंटी करीब आधा घंटे तक रगड़ कर चोदा और हम दोनों साथ में झड़ गए.

दो बार की धकापेल चुदाई के बाद हम दोनों काफी थक चुके थे और हमारी आंख लग गयी.

करीब दो घंटे बाद मेरी आंख खुली तो मैंने देखा कि पांच बज चुके थे.
मैंने वेदिका आंटी को उठाया, वो चुदाई से बहुत खुश थीं.

मैंने आंटी को किस करना शुरू कर दिया.

मेरा लंड फिर से खड़ा हो गया- वेदिका, मुझे अब तुम्हारी गांड मारनी है.
वेदिका- नहीं, मैंने कभी गांड में लंड नहीं लिया है … बहुत दर्द होगा.

मैं- मज़ा भी बहुत आएगा.
वेदिका- नहीं, चूत में डालो.
मैं- ठीक है, चलो घोड़ी बन जाओ.

वो पोज़िशन में आ गईं.

मैं उनके पीछे आ गया और लंड गांड के छेद पर रखकर जोर का धक्का दे दिया.
मेरा लंड थोड़ा ही घुसा था कि वो चिल्लाने लगीं.

मैंने उनका मुँह एक हाथ से बंद कर दिया और जोर का धक्का दे दिया.
इस बार मेरा लंड आधे से ज़्यादा अन्दर घुस गया.

वो मुझसे छूटने की कोशिश करने लगीं लेकिन मैंने आंटी को मजबूती से पकड़ रखा था.

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एक मिनट तक मैं वैसा ही रहा.
फिर जब आंटी का दर्द कम हो गया तो मैंने लंड को अन्दर बाहर करना शुरू कर दिया.

अब वेदिका आंटी भी मेरा साथ देने लगीं.

मैंने अपनी रफ़्तार बढ़ा दी.
अब वेदिका आंटी को भी गांड मराने में मज़ा आने लगा था.

वेदिका- ओह गौरव, आज तो तुमने मुझे जन्नत की सैर करा दी. मारो मेरी गांड … आंह मारो और जोर से मारो … आहह आहहा आअहहा.

मैं भी अपनी रफ़्तार बढ़ाए जा रहा था.

करीब आधे घंटे बाद मैं झड़ने वाला था- बेबी मेरा निकलने वाला है.
वेदिका- अन्दर ही छोड़ो जानू.

फिर मैंने अपनी रफ़्तार बढ़ाई और उनकी गांड में झड़ गया.

वेदिका आंटी भी अपनी गांड मरवा के बहुत खुश थीं.

अब छह बज चुके थे. हम दोनों उठ गए. हमने अपने कपड़े पहन लिए. फिर हमने किस किया.

वेदिका आंटी मुझे अपनी चड्डी दे गईं.

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उसके बाद हम रोज चुदाई करने लगे थे.

मेरी आंटी की पेंटी सेक्स कहानी पढ़ने के लिए मैं आपका दिल से आभारी हूँ. 

आपको मेरी देसी आंटी की पेंटी सेक्स कहानी कैसी लगी, मुझे मेल करके जरूर बताएं.

यह कहानी काल्पनिक है.
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