कविता हमारे नए किरायेदार बंसीलाल की बेटी थी, बंसीलाल वैसे तो अकेला ही किराए पर रहता था हमारे घर में लेकिन कविता को वो पहली बार गाँव से ले कर आया था कारण यह की ग्रेजुएशन के लिए हमारे शहर में ही अच्छे कॉलेज थे. मेरी मम्मी कविता को बहुत प्यार करती थी और अपनी बेटी की तरह ही रखती थी, बंसीलाल के कहने पर मैं भी कविता की कभी कभी हेल्प कर दिया करता था और ये हेल्प एक दिन ऐसी जगह ले गयी जहाँ कविता नए मेरी वर्जिनिटी तोड़कर मेरी हेल्प कर दी. दरअसल कविता गाँव से आई थी तो मैंने सोचा की इसे क्या पता होगा इस सब के बारे में लेकिन एक दिन जब मैं नहाकर छत पर कपडे सुखाने गया तो देखा कि कविता अपने कमरे में गुनगुना रही थी, मैंने खिड़की से झाँका तो देखा की कविता अपनी चूत में ऊँगली कर रही अहि और अपने चूचों को सहलाते हुए गुनगुना रही है.
मैं ठिठका और जैसे ही पलटा तो मेरा तौलिया खुल गया जिसे संभालने के चक्कर में मैंने बाल्टी हाथ से छोड़ दी और कविता को पता लग गया कि बाहर कोई है, कविता ने तुरंत अपनी मैक्सी पहनी और वो बाहर आई. मैं ना तो सीढियाँ उतर पाया और ना ही ढंग से तौलिया बाँध पाया और वो कमबख्त तौलिया फिर से खुल गया तो कविता की हंसी छूट गयी, कविता नए मुझे अपने पास बुलाया और कमरे में ले जा कर बोली “तुमने अभी जो देखा वो किसी से मत बताना” मैंने कहा तुम गन्दी हरकतें करती हो” तो वो बोली जब कुछ नहीं मिलता तो हाथ से ही करना पड़ता है ना” मैंने कहा “हरकत तो फिर भी गन्दी ही है ना”. उस दिन से मेरे और कविता के बीच एक अनजाना सा खिंचाव हो गया था, मैं जब कभी छत पर जाता तो कविता को अवॉयड करता लेकिन बार बार उसकी खिड़की में झाँकने की इच्छा होती थी.
एक दिन मैं फिर उसकी खिड़की में से झाँक रहा था और वो नज़र नहीं आई तो उछल उछल कर झाँकने लगा और तभी मेरे कंधे पर कविता नए हाथ रख कर कहा “गलत जगह उछल रहे हो” ये कह कर वो मुझे अपने कमरे में ले आई खिड़की का पर्दा लगा कर उसने अपनी मैक्सी उतार दी. अंदर कविता ने कुछ नहीं पहन रखा था और उसके निप्प्ल्स भी खड़े हुए मुझे निमंत्रण दे रहे थे, मैं वहां से जाने लगा लेकिन पता नहीं क्या सोच कर मुड़ा और कविता के रसीले अंगूरों जैसे निप्प्ल्स को चूसने ला तो वो बोली “धीरे धीरे चूसो अभी दर्द हो रहा है. ये सुन कर मैंने हौल हौले से उसके निप्प्ल्स चूसने शुरू किये तो उसने मुझसे पूछा “पहले कभी नहीं किया ना ये सब” तो मैंने ना में सर हिलाया और इशारे में उस से पूछा अगर उसने किया है तो. कविता मुस्कुराई और बोली “गाँव में चुदाई आम बात है और आप जल्दी ही सीख जाते हो लेकिन बस किसी को पता चल गया तो बड़ा बवाल होता है” ये कह कर उसने मेरे जिस्म को चूमना शुरू किया और मेरे एक एक कपडे को सेक्सी तरीके से उतार कर मेरे जिस्म को अपनी जीभ से चाटा भी, मुझे आश्चर्य हो रहा था की सीधी सादी गाँव की लड़की कैसे कैसे कर रही है.
बहरहाल मुझे मज़ा आ रहा था और मैंने उसकी निप्प्ल्स को चूसना छोड़ उसके होंठ चूमने शुरू किये हम दोनों को ही इस सब में मज़ा आरहा था, उसकी चूत पर हालाँकि बाल थे लेकिन मैंने कभी चूत देखि नहीं थी तो मुझे बुरा नहीं लगा और मैंने उसकी चूत को भी जम कर चूमा और उसके कहने पर अपनी जीभ से उसके बताये स्थान को चाटा भी. उसने कहा ये भगनासा है और यही सबसे ज्यादा ज़रूरी है तो मैंने उसे और अच्छी तरह से चाटा, अब कविता गर्म हो ह्चुकी थी जिसका सबूत था उसकी चूत से रिश्ता गरम गुनगुना पदार्थ कविता नए दीवार पर हाथ रखे और मुझे अपने पीछे आने को कहा और थोड़ी जद्दोजहद के बाद मेरा लंड उसकी चूत के ठिकाने पर था, अब कविता नए कहा “बस घुसा ही दो अब वेट मत करो” तो मैंने एक ही धक्के में अपना लंड उसकी चूत में घुसा दिया.
कविता पहले से अनुभवी थी सो उसे इतना दर्द नहीं हुआ बस हलकी सी आवाज़ निकली, मैं उसे चोदते समय बहुत सी बातें सोच रहां था और पूछना भी चाहता था की सबसे पहले उसने कब किया लेकिन धक्के लगाने में इतना मज़ा आरहा था की मैं बस वही करता रहा. कविता शायद थक गेई थी इस लिए वो ज़मीन पर बिछी दरी पर लेट गयी और मुझे अपने ऊपर ले लिया अब फिर से छेड़ ढूँढने की प्रॉब्लम हुई और निवारण भी लेकिन अब हम दोनों आराम से चुदाई मचा रहे थे. कविता मेरे लंड को अपनी चूत में फंसाकर कमर हिला हिला कर चुदवा रही थी और मैं उसे चोदते समय भी उसके चूचों का रस पी रहा था सपेसिअल्ली उसके निप्प्ल्स जो मुझे अब भी बड़े रस भरे लग रहे थे. हम दोनों ही झड़ गए और एक दुसरे पर पड़े रहे उस दिन मैं कॉलेज भी नहीं गया और दिन भर बस कविता को चोदने में ही बिताया, शाम को बंसीलाल के आने से पहले मैं वहां से निकल लिया, लेकिन अब तो रोज़ मौका पा कर मैं और कविता चुदाई करते और मैंने उसके रस भरे निप्प्ल्स का मज़ा लेता.