खेतों के बीच में मेरी सहेली मेरे सामने चुदी

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देसी भाभी ने गाँव सेक्स का मजा खेतों के बीच बनी कुठरिया में लिया मेरे सामने. वो अपना ब्लाउज खोले पेटीकोट ऊपर उठाये पुराली पर लेटी थी और लंड मांग रही थी.

दोस्तो, मैं सारिका कंवल एक बार पुन: आप सभी का अपनी सेक्स कहानी में स्वागत करती हूँ.
मेरी पिछली कहानी
मेरी सहेली मेरे यार से चुद गयी नदी किनारे
में अभी तक आपने पढ़ा था कि मैं गांव में अपनी सहेली सुषमा के साथ उसी के घर में बैठी बात कर रही थी.

अब आगे Desi Bhabhi Gaon Sex Kahani:

करीब 11 बज गए थे. तभी मेरा फ़ोन बजा, तो देखा कि सुरेश का फोन था.
मैंने उठाया.

तो उसने पूछा कि कहां हो?
मैंने बताया कि सुषमा के साथ उसके घर पर हूँ.

उसने मुझसे पूछा कि क्या अभी या दोपहर को मिल सकते हैं?
मैंने जवाब दिया- मुश्किल है क्योंकि मैं जोखिम नहीं लेना चाहती.

तब उसने मुझे सुषमा को फ़ोन देने को कहा और उससे भी यही सवाल किया.
सुषमा ने कड़े शब्दों में कहा कि कल ही तो मजा दिया था. अब वो नहा चुकी है, उसका मन नहीं है.

सुरेश ने शायद बार बार उससे विनती की तो सुषमा ने उसने उससे कहा कि देखती हूँ और फिर फ़ोन रख दिया.

उसके बाद से फिर हमारी बातें संभोग की ओर चली गईं.

मैं बहुत सालों के बाद गांव आयी थी. इस वजह से मुझे कुछ पता नहीं था कि कहां मिलेंगे या नहीं.
सुरेश और सुषमा ही बीच बीच में आते थे इसलिए उन्हें ही जुगाड़ पता था.

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सुषमा ने मुझसे कहा- तूने मना क्यों किया, तेरा मन नहीं था क्या करने का?
मैं- अरे कौन इतना जोखिम उठाए. यहां किसी को शक हो गया तो सब फंस जाएंगे.
सुषमा- तू इतना क्यों सोचती है. मैं सब जुगाड़ बिठा दूंगी और साथ में रहूंगी किसी को शक नहीं होगा.

मैं- नहीं रे, रात से मेला शुरू है उसी समय जो करना है, करेंगे. बेकार में मुसीबत वाला काम नहीं करना.
सुषमा- रात की तो फिक्र ही नहीं, सब बंदोबस्त है. दोनों बहनें मिलकर उसकी जान निकाल देंगे … ही ही ही ही.

मैं- कितनी कमीनी हो गयी है तू!
सुषमा- जवानी में तो कुछ कर नहीं पाए, अब मरने से पहले सारी कसर निकाल लेते हैं.

मैं- तेरा पति नहीं करता क्या?
सुषमा- करता है … जब उसकी मर्जी होती है. वैसे भी उसके लिए तो मैं घर की मुर्गी हो गयी हूँ.

मैं- मजा देता भी है या लेकर सो जाता है मेरे पति की तरह?
सुषमा- नहीं रे, मजा तो देता है, भले 10 साल बड़ा है. पर आज भी कभी कभी रूला देता है मुझे. बस उसके मूड का इन्तजार रहता है वरना औरत की कौन सुनता है.

मैं- सबके पतियों का यही हाल है, बाकी पराये मर्द पूछते तो हैं ही हमें … ही ही ही.
सुषमा- सही कहा. वैसे तेरा मन है अभी दोपहर तक बंदोबस्त हो जाएगा.

मैं संकोच भाव से- समझ नहीं आ रहा क्या बोलूँ.
सुषमा- खाना खा ले, फिर बताना वरना रात को तय करते हैं.

मैं- ठीक है रात को ही सही रहेगा.

इतना कह हम दोनों रसोई में गई और उसके छोटे भाई की पत्नी का हाथ बंटाने लगी.
मेरे घर में पता था कि मैं इधर ही खाना खाऊंगी और शाम तक लौटूंगी.

काम धाम कुछ था नहीं इसलिए घरवाले भी चिंता नहीं कर रहे थे कि गांव में ही इधर उधर सबसे मिलूंगी घूमूंगी.

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दोपहर खाना खाने के बाद मैं सुषमा के कमरे में थोड़ी देर सो गई.
वो भी बगल में मेरे सो गई.

हमें सोये हुए आधा घंटा ही हुआ होगा कि सुषमा का फ़ोन बजने लगा.
हम दोनों की नींद खुल गयी.

सुषमा ने फ़ोन उठाया तो सुरेश की आवाज आई.
थोड़ी देर बात कर उसने फ़ोन रख दिया.

मुझे उनकी बातों से कुछ खास समझ नहीं आया पर सुषमा ने फ़ोन रखते ही मुझसे कहा कि सुरेश उसके घर बुला रहा है.
मैंने साफ मना कर दिया कि उसके घर आते जाते कई लोग देख सकते हैं.

थोड़ा विचार करने के बाद सुषमा ने मुझसे कहा- चल री दे देती हैं बेचारे को … बहुत उतावला हो रहा. रात तक शांत रहेगा.
मैं- तुझे उसके घर जाना है तो जा, मैं नहीं जाऊंगी.

थोड़ा सोचने के बाद सुषमा मुझसे बोली- चल मेले की तैयारी देखने चलते हैं. वहीं से खेतों की तरफ चले जाएंगे. उधर ही बैठ कर बातें करेंगे.
मैं- ठीक है, मैं मुँह धो कर आती हूँ.

मैं जब मुँह धो कर आई तो सुषमा फिर फ़ोन पर सुरेश से बातें कर रही थी- हम लोग खेत में जा रही हैं, उधर ही आ जाना.
मैं- उसको क्यों बुलाया?

सुषमा- आने दे मौका मिलेगा तो देखेंगे वरना वहीं बैठ कर बातें करेंगे.
मैं- ठीक है.

हम मेले की तैयारी देखने जाने लगे.
मेले का स्थान गांव के मंदिर वाले मैदान में था.

मेला शाम से शुरू होने वाला था.
इसी बीच हमें भी रात मौका मिलने वाला था क्योंकि मेरे घर में सभी जानते थे कि मैं सुषमा के साथ मेला घूमने वाली थी.
और रात अगर उसके घर रूक गयी तो किसी को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला था.

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हम खेत में पहुंच गई जो करीब दो किलोमीटर दूर था.
यहां कुछ ज्यादा खेत नहीं थे बस घर की सब्जी भाजी और नाम की खेती होती थी.
अब गांव में पहले की तरह खेती करने वाले नहीं थे … न ही उतने खेत बचे थे. हर तरफ घर बन चुके थे.

खेत चारों तरफ से पेड़ से घिरा था, पर कुछ भी उगाया नहीं गया था.

एक तरफ मचान बनी थी और उसी से लग कर गाय भैंस रखने की कुठरिया, उसी में धान की पराली और खेती के औजार थे.
सब देख-वेख कर हम मचान पर चढ़ गई और वहीं बैठ कर बातें करने लगी.

इधर उधर से जिनके गाय, भैंस, बकरी चरने आती थीं, सिर्फ वही लोग दिखते थे.
वो भी कभी कभार नजर आ रहे थे.

हमारे वहां आने के करीब आधा घंटा के बाद सुरेश भी आ गया.
सुषमा ने मुझसे कहा- मैं सुरेश के साथ कमरे में जाऊँगी. अगर करने की इच्छा हो तो कुठरिया का दरवाजा खोल दूँगी, मौका देख घुस जाना.
मैंने कहा- मुझे डर लगता है, तू ही जा!

इतना कहने के बाद सुषमा ने कुठरिया की चाबी सुरेश को दे दी और उसे मौका देख अन्दर जाने का इशारा कर दिया.
आस पास जब कोई नहीं था तो सुरेश ने दरवाजा खोला और अन्दर चला गया.

थोड़ी देर के बाद सुषमा भी मचान से उतरी और इधर उधर देख अन्दर चली गयी.
वो मुझे नजर रखने का इशारा करके घुसी और दरवाजा अन्दर से बंद कर लिया.

मैं ऊपर ही बैठ कर अपने फ़ोन में अपनी वयस्क साइट खोल खुद व्यस्त हो गयी.
अपने मित्रों का संदेश पढ़ने और उनका जवाब देने में!

साथ ही निगरानी भी रखे हुई थी कि यदि कोई आने वाला हो, तो उन्हें सचेत कर दूँ.

कोई 15-20 मिनट गुजर चुके थे. मुझे लगा कि अब तो वो काम खत्म करके बाहर निकलेंगे.
पर उनका फ़ोन आया और मुझे अन्दर बुलाया.

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मैंने बड़े ध्यान से इधर उधर देखा और अन्दर जाने लगी.
सुरेश ने ही दरवाजा खोला.

मैं झट से अन्दर गयी और सुरेश ने तुरंत दरवाजा बंद कर दिया.
सुरेश केवल बनियान में था वो भी पेट तक चढ़ा नीचे नंगा ही था और उसका लिंग कड़क खड़ा था.

उधर पराली की ढेर के ऊपर सुरेश की लुंगी बिछा कर सुषमा बैठी थी.
उसके भी ब्लाउज के बटन खुले थे और स्तन झूल रहे थे; साड़ी और पेटीकोट उतार कर एक किनारे रखा हुआ था.

मुझे समझ नहीं आया कि ये लोग इतनी देर से कर क्या रहे थे.

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मैंने उनसे पूछा- हो गया? क्यों बुलाया मुझे?
सुषमा- अरे इसका बहुत नाटक है मुझसे नहीं होगा, तुम ही समझाओ.

मैं- क्या हुआ बताओ?
सुरेश- अरे यार, मजा नहीं आ रहा कुछ किए बिना … और ये कहती है चोदो.

सुषमा- तभी से तो मेरी बुर चाटी न तुमने … अब चोद चाद कर मामला खत्म करो. शाम में मेला देखने भी जाना है … तैयार भी होना है.
मैं- तो अभी तक तुम लोगों ने कुछ किया ही नहीं, सिर्फ समय बर्बाद किया?

सुषमा- मेरा मन नहीं था, फिर भी दे रही हूँ. पर इसका तो अलग ही नाटक है.
सुरेश- अरे मैंने बस इससे ये कहा कि मुँह में लेकर चूसो. इसी में गुस्सा हो गयी!

मैं- अभी समय क्यों बर्बाद करना … जल्दी से कर लो. इतना जोखिम उठा कर दे रही है वो!
सुषमा गुस्से में अपने ब्लाउज के हुक लगाती और साड़ी पहनने की तैयारी करती हुई बोली- अब कुछ नहीं, मैं जा रही हूं. तुझे अगर करवाना है, तो दे दे इसको.

सुरेश- अरे गुस्सा क्यों हो रही, चलो जैसा तुम कहो.
सुषमा- नहीं, अब मैं चली.

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सुरेश उसे साड़ी पहनने से रोकता हुआ बोला- अरे प्लीज जल्दी कर लूंगा.

उसकी बार बार की विनती सुन सुषमा मान गयी और लुंगी के ऊपर लेट गयी और अपनी टांगें फैला लीं.
सुषमा- ठीक है अब जल्दी से आओ.

सुरेश अपने हाथ से लिंग हिलाता हुआ- तुम्हारे गुस्से से मेरा लौड़ा भी ढीला हो गया.
सुषमा- हां तो खुद से खड़ा करो या सारिका को बोलो.

सुरेश मेरी तरफ देखता हुआ- प्लीज मदद कर दो!
मैं उसकी ये हालत देख वहीं घुटनों के बल हो गयी.

सुरेश मेरे पास आया और मैंने उसका लिंग पकड़ हाथ से हिलाते हुए मुँह में भर लिया और चूसने लगी.
मुझे देख सुषमा हैरान सी थी क्योंकि उसने कभी ये सब नहीं किया था.

मैंने तिरछी नज़र से लिंग को चूसते हुए सुषमा को देखा.
वो बार बार अपनी योनि सहला रही थी. दो उंगली योनि में घुसाती और वहां से रस योनि के मुँह पर मलने लगती.

इधर मैं एक हाथ से उसके लिंग को पकड़ हिलाती हुई चूस रही थी और दूसरे हाथ से उसके अंडकोषों को दबा और सहला रही थी.

दो मिनट में ही उसका लिंग पत्थर सा कड़क हो गया.
तो मैंने छोड़ दिया.

सुरेश संभोग के लिए तैयार हो गया था.
वो आगे बढ़ा सुषमा की ओर … जहां वो उसके लिए तैयार लेटी हुई थी.

सुषमा के ऊपर आते ही सुषमा ने हाथ में थूक लगा कर सुरेश के लिंग के सुपारे में मल दिया, फिर थोड़ा और थूक हाथ में दोबारा लेकर अपनी योनि में मल दिया.
उंगली से योनि की छेद को ऐसे घुमाया मानो उसे फैला रही हो.

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सुरेश उसके गले, गालों और स्तनों को चूमता हुआ उसके ऊपर झुका.
सुषमा ने उसके लिंग को पकड़ अपनी योनि की छेद में टिका कर कहा.

सुषमा- सारिका, तू वही दरवाजे के पास खड़ी हो जा … और दरवाजे के छेद से बाहर ध्यान रखना. चल सुरेश, अब जोर लगाओ. हां घुस गया … मारो अब धीरे धीरे.
मैं जाकर दरवाजे के पास खड़ी हो गयी. दरवाजे में बहुत से छेद थे, सो मैं बाहर नज़र रखे हुए थी.

इधर सुषमा और सुरेश पराली के बिस्तर पर संभोग में लीन हो गए थे.

कुछ ही देर में सुषमा कराहने और सिसकने लगी.
मैं कभी बाहर देखती तो कभी इन दोनों को.

जैसे जैसे समय बीत रहा था दोनों की हरकतें जोश से भरती जा रही थीं.

सुषमा ने उसके सिर को पकड़ जोर से अपने स्तनों के ऊपर दबा रखा था.

अब सुरेश ने भी उसकी दोनों टांगों को नीचे से हाथ लगा कर अपने कंधे तक उठा लिया था.
वो लगातार पूरी ताकत से धक्के मारे जा रहा था.
सुरेश हांफ़ता हुआ अपनी पूरी ताकत लगा कर संभोग कर रहा था.

वहीं सुषमा भी उसका पूरा समर्थन कर रही थी.
कभी सुषमा उसे खुद से अपने स्तनों को बारी बारी चुसवाती, तो कभी अपने दोनों हाथों से सुरेश के चूतड़ों को थपकी मार पकड़ अपनी ओर खींचती मानो उसे अपनी योनि में समा लेना चाहती हो.

वो इस तरह खो चुके थे कि शायद उन्हें ख्याल ही नहीं था कि मैं भी वही हूँ.
मेरे अन्दर भी अब वासना जागृत होने लगी थी उन्हें देख कर … पर मैं कुछ नहीं कर सकती थी.

कुछ देर के बाद सुरेश उसे बोला कि वो थकने लगा है इसलिए सुषमा ऊपर आ जाए.
दोनों ने तुरंत अपनी जगह बदली और अब सुषमा सुरेश के ऊपर आकर ऐसे उछलने लगी मानो किसी घोड़े की तेज सवारी कर रही हो.

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उसके इस तरह उछलने से उसके स्तन भी उछल कर उसके गले तक जा रहे थे.
मैं समझ गयी कि ये जल्द ही अपना पानी छोड़ने वाली है.

और हुआ भी वही … थोड़ी ही देर में हिचकोले खाती हुई वो झड़ गयी.
इसके बाद सुषमा की रफ्तार धीमी पड़ गयी.

सुरेश ने एक करवट ली और सुषमा को पलट कर नीचे गिरा कर खुद ऊपर हो गया.
पर इस दौरान उसने अपना लिंग उसकी योनि से बाहर नहीं आने दिया.

अब उसने उसकी एक टांग उठा सुषमा के सीने तक मोड़ दिया और हाथ के सहारे उसे रोक जोर जोर से धक्के मारने लगा.

धक्के इतने जोरदार थे कि सुषमा चाह कर भी खुद को कराहने से रोक न पायी.

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कुछ 5-6 मिनट होते होते सुरेश ने भी अपना लावा उसकी धधकती योनि की गहराई में छोड़ना शुरू कर दिया.
उसने लिंग उसकी योनि की गहराई में तब तक दबा कर रखा, जब तक कि वीर्य की आखिरी बूंद न गिर गई.

वो उसी अवस्था में बिना हिले डुले गुर्राता रहा.
करीब 1 मिनट बाद उसने अपने शरीर को ढीला किया और एक जोर की लंबी सांस खींचता हुआ अपने लिंग को उसकी योनि से बाहर निकाल कर खड़ा हो गया.
अपने दोनों हाथों को कमर में रख वो अपनी सांसों पर काबू पाने लगा.

उधर सुषमा भी चित लेटी लंबी लंबी सांसें ले रही थी.
सुरेश का लिंग शिथिल पड़ने लगा और झूलने लगा.

उसके लिंग और उसके चारों तरफ योनि से निकली चिपचिपी चिकनाई से चमक रहा था.

वही सुषमा दोनों टांगें सीधी मगर फैलाये लेटी थी और उसकी भी योनि के चारों तरफ और बालों में झाग जैसा सफेद सफेद लग गया था.

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मैं आगे बढ़ उनके पास आई और देखा तो सुषमा की योनि से वीर्य रिसता हुआ बाहर आ रहा था.
मैं वहीं बैठ गयी सुषमा अब सुस्त दिख रही थी. वो किसी तरह उठ कर अपने पेटीकोट से योनि को साफ करने लगी.
फिर वो कपड़े पहनने के लिए उठ गई.

तब सुरेश ने भी अपनी लुंगी को उठाया और पहनते हुए कहा- मजा आ गया यार, तुमको मजा आया?
सुषमा अपनी साड़ी पहनती हुई- हां मजा तो आया, थका दिया आज तुमने. अब तुम पहले निकलो देखना कोई हो तो मत निकलना.

सुरेश- ठीक है, रात का क्या प्रोग्राम है?
सुषमा- अब क्या … चोद तो लिया अब रात में मेला देखो!

सुरेश- सारिका तुम क्या बोलती हो. रात को चोदने दोगी?
मैं- कितना करोगे. बहुत हुआ … तबियत खराब हो जाएगी.

सुरेश- अरे जिंदगी में पहली बार ऐसा मौका मिला है. अब अगर इसके बाद महीना भर अस्पताल में बिताना पड़े, तो कोई बात नहीं … हा हा हा हा हा.
सुषमा- ही ही ही ही.
मैं- ही ही ही ही ही.

सुरेश- क्या बोलती हो, सब मेले में रहेंगे. मौका मिल जाएगा मेरे घर या सुषमा के घर आ जाना.
मैं- ठीक है देखती हूँ.

सुषमा- ठीक है सारिका, अगर मन है तो मेरे घर में ठीक रहेगा. आने जाने की झंझट नहीं रहेगी और सुरेश पीछे के दरवाजे से निकल भी जाएगा. मेरा भाई और उसकी पत्नी तो सुबह ही आएंगे.
सुरेश- फिर बोलो कितने बजे मिलना है?

सुषमा- रात 11-12 बजे के बाद ही, तब सब मेले में रहेंगे.
मैं- जैसा ठीक लगे.

सुरेश- ठीक है. मैं निकलता हूँ.
सुरेश मौका देख वहां से निकल गया.

हमने भी सही मौका देखा और उस कुठरिया से बाहर निकल आए.
फिर इधर उधर टहलते हुए घर आ गए.
दोपहर का समय था इसलिए उतना डर नहीं था. घर आकर हमें 4 बज गए थे.

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सभी लोग मेरे घर पर अपना अपना काम खत्म कर रहे थे. गांव का माहौल ही अलग होता है. हर त्योहार मेला लोग दिल से मनाते हैं.
मैंने भी सबके साथ हाथ बंटा कर जल्दी से काम खत्म दिया.

आपको गाँव सेक्स कहानी कैसी लग रही है, प्लीज़ मुझे मेल करके जरूर बताएं.
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