भतीजी सेक्स की इस कहानी में पढ़ें कि मुझे अपने साले की बेटी के साथ सर्दियों में ट्रेन में सफर करने का मौक़ा मिला. एक दूसरे के जिस्म की गर्मी से हमने सर्दी भगायी.
दोस्तो, मैं चन्दन सिंह आज बहुत दिनों बाद एक कहानी लेकर आया हूँ. मुझे उम्मीद है कि हर बार की तरह इस बार भी आपको मेरी सेक्स कहानी पसन्द आएगी.
मेरी पिछली कहानी थी
चालू अमीर लेडी की वासना पूरी की
इस बार कहानी मेरे खुद के अनुभव से जुड़ी हुई भतीजी सेक्स की कहानी है.
यह बात 20 जनवरी की है. मेरे साले साहब बंगलौर में रहते हैं. उनके एक पुत्र हैं, जो मल्टीनेशनल कम्पनी में जॉब करते हैं तथा दो लड़कियां हैं.
बड़ी लड़की का नाम अनीता है, उसकी उम्र 28 साल है और उसका फिगर 36-30-38 का बड़ा सेक्सी फिगर है. अनीता की शादी गुजरात के मेहसाणा में हुई है.
अनीता की दो बेटियां हैं.
मेरे साले की दूसरी लड़की अविना का रिश्ता राजस्थान में तय हुआ है. अविना की अभी सगाई होना थी.
सगाई की रस्म करने के लिए वे राजस्थान जा रहे थे. रिवाज के मुताबिक मुझे भी सपरिवार बुलाया गया था.
उस समय मेरी धर्मपत्नी का स्वास्थ्य ठीक नहीं होने के कारण मुझे अकेले ही जाना पड़ा.
मैंने फ्लाइट की टिकट बुक की और समय पर सुसराल पहुंच गया. वहां मालूम पड़ा कि साले साहब आते समय मेहसाणा से अनीता और उसके बच्चों को भी ले आए थे.
जनवरी की 21 तारीख को हम सभी पुरुष और महिलाएं बीकानेर पहुंच गए. उधर सगाई की रस्म अदा करके देर रात को सभी जन सुसराल आ गए.
दूसरे दिन सुसराल में ही रह कर मैंने मुंबई के लिए फ्लाइट बुक करने की कोशिश की. मगर उस दिन … और अगले तीन चार दिन तक कोई सीट उपलब्ध नहीं थी.
मेरे बंगलौर वाले साले साहब की जयपुर से फ्लाइट पहले से ही बुक थी.
उन्होंने मेरी कोशिश असफल होते देख कर कहा कि जीजाजी आपकी वैसे भी फ्लाइट अभी बुक नहीं हुई है और आज तक आपको अनीता की सुसराल जाने का काम भी नहीं पड़ा, तो आप ऐसा कीजिए कि अनीता को अपने साथ लेकर उसे उसकी सुसराल छोड़ कर वहीं से मुंबई चले जाना.
उनकी ये बात मुझे जम गई और मैंने रेल का रिजर्वेशन लेने की कोशिश की, मगर उसमें भी मुझे सफलता नहीं मिली.
आखिर शाम को सवारी गाड़ी पकड़ने का फैसला करके मैं, अनीता और उसके बच्चों सहित जोधपुर रेलवे स्टेशन आ पहुंचा.
उस समय चार बज रहे थे. अनीता को एक ठीक-ठाक जगह बैठा कर मैं कुछ खाने पीने का सामान लेने चला गया.
सामान लेकर वापसी में बियर की दुकान देख कर मन हुआ, तो मैं एक बियर की कैन पीकर आ गया. साथ में व्हिस्की शॉप के पास में एक प्लास्टिक आइटम बेचने की दुकान से दो लीटर की केतली में दो बियर कैन डाल लीं.
मगर तीसरी कैन आधी ही आई केतली में … तो बाक़ी आधी बियर को, एक सुनसान जगह देख मैंने पी ली.
व्हिस्की शॉप से मैंने व्हिस्की का हाफ भी ले लिया था. ये सब सामान लेकर मैं रेलवे स्टेशन पहुंच गया.
मेहसाणा जाने वाली एक ट्रेन प्लेटफार्म पर लग चुकी थी. मैंने जानकारी की, तो मालूम पड़ा कि यह पूरी गाड़ी पैसेंजर (धीमी रफ्तार से चलने वाली) ट्रेन है. इसमें कोई रिजर्वेशन का डिब्बा नहीं लगता है.
समय बीतता जा रहा था, आगे किसी और ट्रेन की उम्मीद नहीं दिखी, तो कोई रास्ता ना देखकर मैं अनीता और उसके बच्चों को लेकर ट्रेन में जा बैठा.
ट्रेन के हर डिब्बे में सवारियां भरी हुई थीं. हमें एक सीट मिल गयी थी, जिस पर दोनों बच्चे, अनीता के पास और अनीता के बगल में मैं बैठ गया था.
हम सभी बैठ कर ट्रेन के रवाना होने का इंतजार करने लगे.
मैंने मेरे सामने की सीट पर एक सज्जन से पूछा- यह ट्रेन मेहसाणा कब तक पहुंचेगी?
वे बोले- सुबह छह बजे तक.
यह सुनते ही मेरा दिमाग खराब हो गया. पर कोई रास्ता ही नहीं था, सो मन मसोस कर बैठा रहा.
कुछ देर बाद गाड़ी चल पड़ी. हर एक स्टेशन पर ठराव करती हुई धीरे धीरे ट्रेन आगे बढ़ रही थी.
ऐसी ट्रेन में मेरी यह पहली यात्रा थी … जो बहुत तकलीफदेह लग रही थी. मैंने सोचना बंद कर दिया और दूसरी तरफ दिमाग लगाने लगा.
अनीता से मेरी व्हाट्सप्प पर अच्छी बनती थी. कोई दिन ऐसा नहीं जाता था, जब हम दोनों एक दूसरे को पोस्ट नहीं करते. हमारे विचार बहुत मिलते थे.
अनीता मुझसे बहुत बार कहती थी कि फूफाजी आपके और मेरे विचार काफी मिलते हैं.
मैं भी हंस कर उसकी बात का समर्थन कर देता था.
जनवरी के इस महीने में चूंकि सर्दियों के दिन होते हैं, सूरज भी जल्दी ही ढल गया था … ठंडक लगना चालू हो गयी थी. इस बार मैं गर्म कपड़े लेकर नहीं आया था, मुझे मालूम ही नहीं था कि इस बार इस तरह की यात्रा करने को मिलेगी.
अनीता ने दोनों बच्चों को चादर डाल कर सुला दिया. उसने एक चादर मुझे देते हुए कहा कि आप इससे खुद को ढक लो.
मगर चादर एक ही थी और अनीता को भी ठंड लग रही थी.
मैंने उससे कहा- तुम्हें भी ठंड लग रही होगी. तुम ही ओढ़ लो.
हम दोनों दूसरे एक दूसरे की मान मनौवल करने लगे. आखिर दोनों ने तय किया और हम दोनों को एक ही चादर से खुद को ढकना पड़ा. चादर दो लोगों के लिए पर्याप्त नहीं थी, इस कारण मुझे अनीता से चिपक कर बैठना पड़ा.
इस समय शाम के सात बज रहे थे. मैंने केतली खोल कर बियर का घूंट पिया.
अनीता बोली- मुझे भी पानी पीना है.
अब मैं उससे कैसे कहता कि यह पानी नहीं है. मैंने मजबूरन केतली उसके हाथ में दे दी.
जैसे ही उसने पहला घूंट मुँह में डाला, उसे समझ में आ गया कि इसमें बियर है. वैसे भी हमारे खानदान में तीज त्यौहार पर महिलाएं शराब आदि पिया करती हैं. अनीता भी इससे पहले बियर दारू आदि पी चुकी थी.
वो बियर का स्वाद लेते हुए मेरे कान के पास मुँह लाकर बोली- थैंक्स फूफाजी, बियर से मजा आ गया … लेकिन आज बियर की जगह व्हिस्की या रम पीने को मिल जाती, तो ठंड लगनी कम हो जाती.
मैं उसके कान के पास मुँह ले जाकर बोला- अभी इस बियर मजा लो, उसके बाद व्हिस्की भी पिला दूंगा.
वो मेरी ओर देख कर मुस्कुरा दी.
कुछ ही देर में एक बड़ा स्टेशन आ गया. उधर से मैं बच्चों के लिए खाने का और पानी की बोतल ले आया.
अनीता ने चलती ट्रेन में बच्चों को खिला पिला कर उन्हें सुला दिया.
इधर हम दोनों आहिस्ता आहिस्ता बियर पीने का लुत्फ़ ले रहे थे. हमारे सामने वाली सीट पर पति-पत्नी थे. उन दोनों ने एक ही सीट पर लेट कर चादर ओढ़ ली.
हम दोनों को बियर का नशा आने लगा था. हम दोनों के बदन आपस में मिले हुए थे. दोनों को एक दूसरे की गर्मी लग रही थी.
उसी समय मेरा एक हाथ अनीता की जांघों पर रखा गया था. अनीता ने भी कोई ऐतराज नहीं किया था. इसी दरम्यान मेरे मोबाईल पर घर से फोन आ गया. मैं अनीता को बियर पीते देखते हुए बात करने लगा.
अनीता ने खाली हो चुकी केतली की तरफ इशारा करके बताया कि बियर खत्म हो चुकी है.
उसकी आंखें नशीली हो चुकी थीं. मैंने फोन पर बात की और फोन जेब में रख लिया.
अनीता धीरे से बोली- फूफाजी अगर आप को बुरा नहीं लगे, तो मैं आपके फोन में व्हाट्सप्प को खोल देख लूं!
मैंने उसे फोन दे दिया और उसके हाथ से केतली लेकर बाथरूम की ओर आ गया. बाथरूम में अन्दर जाकर मैंने व्हिस्की का हाफ, केतली में खाली कर दिया और बोतल को चलती रेल से बाहर फेंक कर वापिस अपनी सीट पर आकर बैठ गया.
फिर मैंने पानी की बोतल से केतली में पानी डाल कर केतली को हिलाया और एक घूंट पीकर केतली अनीता की ओर कर दी.
अनीता ने घूंट भर कर आंख से इशारा किया कि अब सही चीज मिली.
उसने तीन चार घूंट लेकर चखना थैले से बाहर निकाला.
वो मुझे केतली देते हुए बोली- अब हुई ना बात … मजा आ गया.
अनीता मेरे मोबाईल में लगातार कुछ देखती जा रही थी. मोबाईल में वो क्या देख रही थी, ये मुझे मालूम नहीं पड़ रहा था.
मैंने उसके हाथ से खींच कर मोबाईल ले लिया. देखा तो वो उसमें ब्लू फिल्म की क्लिप देख रही थी. ये क्लिप किसी ने मुझे व्हाट्सैप पर भेजी होगी.
मेरी भतीजी सेक्स और शराब के नशे में बोली- फूफाजी, अब तो आप उम्रदराज और बूढ़े हो चुके हैं, इस उम्र में इस तरह की मूवी देखते हो!
मैंने भी मस्ती में कह दिया- बूढ़ा होगा तेरा बाप … साली में अभी तेरी जैसी तीन चार को साथ निपटा सकता हूँ.
अचानक ही मेरे मुँह से इस तरह के अप्रत्याशित बोल निकले, तो अनीता भी आश्चर्य में पड़ गयी.
वो सम्भल कर बोली- ऐसी बात है … तो मुझे खुश करके दिखा दो, मैं मान जाऊंगी.
मैं बोला- शर्त क्या लगाती हो?
वो बोली- आप जो कहोगे, वो दूंगी.
मैं बोला- तुम नहीं दे पाओगी.
वो बोली- ऐसा आपको क्या चाहिए, जो मैं नहीं दे पाऊंगी. अगर मेरे हाथ में होगा, तो पक्का दे दूंगी.
मैंने कहा- तेरे हाथ में ही है.
वो बोली- ओके पहले मुझे खुश करके दिखाओ … फिर आपकी शर्त की बात करेंगे.
मैंने कहा- ठीक है, अब मैं तुमसे तौबा बुलवाने के बाद ही जाऊंगा, परन्तु तुम अपने सुसराल में अपने पति के होते हुए तुम किस प्रकार मिलोगी.
वो बोली- यह आप मेरे ऊपर छोड़ देना. पर जब तक मैं कहूँ, तब तक आपको मेरे सुसराल में रुकना पड़ेगा.
यह कह कर उसने अपना हाथ मेरी पैंट पर रख दिया.
मैंने भी टांगें खोल दीं.
उसने मेरे लंड को टटोल कर देखा. फिर चैन खोलने की कोशिश की. मैंने सहयोग देते हुए चैन खोल कर लंड बाहर निकाल कर उसके हाथ में दे दिया. पहले उसने लंड की नापतौल की, बाद में दबा कर हार्डनैस को देखा.
वो खुश होकर बोली- वाकयी … लगता तो है कि आप अभी भी जवान हैं. बुआजी इतना बड़ा कैसे ले पाती होंगी?
मैं बोला- जब तुम एक बार ले लोगी, तब तुमको मालूम पड़ जाएगा.
चादर से हम दोनों ने खुद को गले गले तक ढका हुआ था. इसी दरम्यान वो लंड के ऊपर हाथ से ऊपर नीचे करती रही. मैंने उसके ब्लाउज से एक चूची को बाहर निकाल कर उसे मसलने लगा.
उसने दूसरे हाथ से मेरा एक हाथ पकड़ कर अपने पेटीकोट के अन्दर डलवा लिया.
मेरा हाथ आराम से उसकी चुत तक चला जाए, इसके लिए अनीता ने पेट दबा कर हाथ अन्दर करवा लिया था. अब मेरे हाथ की उंगलियां उसकी बुर में खेल रही थीं.
अनीता को दारू का नशा ज्यादा हो चुका था. मेरी भतीजी सेक्स की मस्ती में पसर कर चुत रगड़वाने का मजा ले रही थी.
इसी बीच कोई स्टेशन आया, तो हमारे सामने वाली सीट खाली हो गयी. एक बार मैंने पूरे डिब्बे में घूम कर मुसाफिरों को देखा. डिब्बा आधे से ज्यादा खाली हो चुका था.
इस समय रात के ग्यारह बज रहे थे. करीब करीब सभी पैसेंजर सो रहे थे, जो जागे थे, वो सर्दी के मारे अपने कम्बलों में दुबके हुए थे.
मैं वापिस आ गया और केतली से बड़ा सा घूंट पीकर गले के नीचे उतार लिया.
अनीता बोली- मुझे भी पीना है.
उसे भी एक घूंट पिला कर बाकी को मुझे पानी की तरह गटकना पड़ा. मैं जानता था कि अगर शराब अब बच गई, तो अनीता पिए बगैर नहीं रहेगी.
मैंने केतली खाली कर दी. दोनों बच्चों को सामने वाली सीट पर लिटा दिया और सामने की तरफ अपने दोनों पैर फैला कर बैठ गया.
इसके बाद अनीता को चादर ओढ़ कर मेरी तरफ सर रखने को कहा. जब तक वो अपना सर मेरी तरफ लायी, तब तक मैंने पैंट से लंड को बाहर निकाल लिया था.
मेरा उससे लंड चुसवाने का मन था. अनीता मेरी इच्छा समझ चुकी थी. उसने मुँह में लंड ले लिया और चूसने लगी. मैंने बचे हुए चादर को अनीता के सर पर डाल दिया.
अब मेरे साले की लड़की अनीता की चुदाई की कहानी में आगे मैं भतीजी सेक्स, उसकी चुदाई को पूरे विस्तार से लिखूंगा.
आप कमेंट करना न भूलें.
भतीजी सेक्स की कहानी का अगला भाग: अतृप्त भतीजी और उसकी मौसी सास की चुदाई- 2