आपके हाथ और चूत मे जादू है

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मुझे तो आपने घर के काम काजो से फुर्सत ही नहीं मिलती थी और मैं घर के कामों में ही उलझी रहती थी हमारे घर पर हमारे अतिथियों का आना जाना लगा रहता था क्योंकि मेरे पतिदेव और मेरे ससुर जी के दोस्त हमारे घर पर अक्सर आते रहते थे। मेरे पति और मेरे ससुर दावत के बड़े शौकीन थे और उन्हें कभी भी कोई बुलाता तो वह वहां जरूर जाया करते थे। मेरे पति खाने के इतने शौकीन थे कि वह दूर से ही खुशबू से पहचान जाते कि घर में आज क्या बना है। मेरे पति के मस्त मौला अंदाज की वजह से उन्हें हमारी सोसाइटी में सब लोग बड़ा पसंद किया करते थे। जब मेरी शादी हुई तो उस वक्त मेरे पति अनिल काफी दुबले पतले थे लेकिन समय के साथ-साथ उनका मोटापा भी बढ़ता चला गया और उनके खाने की गंदी आदत की वजह से वह काफी मोटे हो चुके हैं।

उनकी जबान पर तो जैसे खाने का भूत सवार है कहीं भी उन्हें कुछ चटपटा मिल जाए तो वह कभी छोड़ते ही नहीं है लेकिन मैं उनके विपरीत हूं मैं बिल्कुल खाने की शौकीन नहीं हूं मुझे सिर्फ खाना बनाने का शौक है। जब भी कोई अतिथि हमारे घर पर आते हैं तो मैं उनका स्वादिष्ट व्यंजनों से दिल जीत लेती हूं इसलिए मेरे पति हमेशा मुझे कहते कि कल्पना तुम्हारे हाथ में जादू है। जो भी हमारे घर आता है वह हमेशा यह कहता है कि तुम बड़े खुशनसीब हो कि तुम्हें कल्पना जैसी पत्नी मिली। मेरे पति की आदत ऐसी थी कि वह किसी का भी दिल जीत लेते थे और उन्हें बातों में हरा पाना बहुत ही मुश्किल था। हमारी कॉलोनी के सब लोग उनकी बड़ी तारीफ किया करते थे और मेरी सहेलियां तो मुझे हमेशा कहती कि तुम्हें तुम्हारे पति के रूप में एक अच्छे इंसान मिले हैं। मैं भी उन सब की बातों से सहमत रहती थी लेकिन कई बार मेरे अंदर जलन की भावना भी पैदा हो जाती थी क्योकि मेरे पति की सब लोग तारीफ किया करते थे और सब लोग उन्हें बहुत पसंद करते थे। मैं एक दिन शाम के वक्त रात का खाना तैयार कर रही थी तभी हमारे घर की घंटी बजी मेरी सासू मां ने मुझे आवाज देते हुए कहा बहू देखना दरवाजे पर कौन है। मैं तेजी से दरवाजे की ओर गई जैसे ही मैंने दरवाजा खोला सामने एक सज्जन खड़े थे मैंने उन्हें पहचाना नहीं उन्होंने मुझे देखते ही कहा क्या आप कल्पना जी हैं।

मैंने कहा हां मैं कल्पना हूं मैंने उन्हें कहा लेकिन मैंने आपको पहचाना नहीं तो वह कहने लगे मेरा नाम संतोष है मैं पटना का रहने वाला हूं। मैंने उन्हें कहा अच्छा तो आप पटना के रहने वाले हैं अरे मेरा मायका भी तो वहीं है, मैं उनसे बात करने लगी मैंने संतोष से कहा आप अंदर आ जाइए। वह कहने लगे नहीं कल्पना जी अभी तो मैं चलता हूं बस ऐसे ही आपसे मिलने आया था सोचा आप भी पटना की रहने वाली है तो आपसे मुलाकात कर ली जाए। मैंने उन्हें कहा कि आप अंदर बैठिये मैं भी खाना बना रही थी तो मैं थोड़ा रसोई में अपना काम देख आती हूं। मैंने उन्हें अंदर आने के लिए कहा तो वह अंदर आ गए मेरी सासू मां अपने कमरे से बाहर आई और वह संतोष के साथ बैठ गई। संतोष और मेरी सासू मां आपस में बात करने लगे मैं रसोई में खाना बना रही थी मैंने सब्जी बना ली थी और दाल को मैंने गैस पर चढ़ा दिया था फिर मैं रसोई से बाहर हॉल में आ गई। जब मैं रसोई से बाहर हॉल में आई तो मैंने संतोष से कहा आप पटना में कहां रहते हैं उन्होंने मुझे कहा कि मैं पटना में यूनिवर्सिटी के पास रहता हूं मैंने उन्हें कहा वहां पर तो मेरा घर भी है। संतोष कहने लगे इसीलिए तो मैं आपसे मिलने के लिए आया था मुझे पड़ोस में ही किसी ने बताया कि कल्पना जी भी पटना की रहने वाली है तो सोचा आपसे मुलाकात करता चलूं। संतोष का व्यक्तित्व भी प्रभावित करने वाला था और उनकी बातें मैं और मेरी सासू मां बड़े ध्यान से सुन रहे थे। उन्होंने मुझे बताया कि वह कुछ दिनों पहले ही यहां पर शिफ्ट हुए हैं वह किसी सरकारी विभाग में काम करते हैं और काफी देर तक वह हमारे साथ बैठ कर बात करते रहे मैंने उन्हें कहा आज आप हमारे घर पर ही रात का भोजन करिएगा। वह कहने लगे नहीं कल्पना जी अभी मैं चलता हूं मैंने सोचा आप से मिल लूं तो इसलिए मैं आपसे मिलने के लिए आ गया और उसके बाद वह घर से चले गए। जब मेरे पति अनिल घर पर आए तो मैंने उन्हें संतोष के बारे में बताया वह कहने लगे आजकल ऐसे लोग कहां मिलते हैं लोगों ने तो अपने आप को जैसे बंद कमरों में कैद कर लिया है।

मेरे पति ने भी मुझ से इच्छा जाहिर की कि मैं भी संतोष से मिलना चाहूंगा मैंने उन्हें कहा हां क्यों नहीं वह हमारे पड़ोस में ही रहते हैं किसी दिन हम उन्हें रात के डिनर पर इनवाइट करते हैं। मैंने अपने पति से जब यह इच्छा जाहिर की तो मेरे पति कहने लगे हां क्यों नहीं तुम संतोष को कभी घर पर बुलाओ। मेरी खुशी का कारण संतोष थे और वह मेरे मायके में सब लोगों को जानते हैं उनका परिचय मेरे माता-पिता से भी था और आखिरकार एक दिन हमने उन्हें रात के डिनर के लिए घर पर इनवाइट किया, पहले तो वह संकोच कर रहे थे लेकिन फिर हमने उन्हें घर पर बुला ही लिया। जब वह घर पर आए तो पहली बार ही अनिल संतोष से मिले थे अनिल के व्यक्तित्व और संतोष के व्यक्तित्व में काफी समानताएं थी वह दोनों एक दूसरे से ऐसे बात कर रहे थे जैसे कि कितने वर्षों पुराने बिछड़े हुए यार हो और एक दूसरे के साथ उन दोनों को समय बिताना अच्छा लगा। मैं जब डाइनिंग टेबल पर खाना रख रही थी तो संतोष कहने लगे कल्पना जी खाने की खुशबू से ही खाने का अंदाजा लग रहा है कि खाना बड़ा स्वादिष्ट होगा। तभी अनिल भी बोल उठे और कहने लगे कल्पना के हाथ में तो जैसे जादू है हमारे घर पर जितने भी लोग आते हैं वह हमेशा यही कहते हैं कि कल्पना खाना बड़ा स्वादिष्ट बनाती हैं।

संतोष ने मेरे पति अनिल को एक सलाह देते हुए कहा कि कल्पना जी के लिए टिफिन सर्विस का काम क्यों नहीं खोल लेते हमारे जैसे तो काफी लोग यहां पर हैं जिन्हें खाने के लिए बाहर जाना पड़ता है और सोसायटी भी काफी बड़ी है। अनिल को भी संतोष की बात अच्छी लगी और वह कहने लगे आपने बिल्कुल सही कहा मैंने कभी इस बारे में सोचा नहीं था उन्होंने मेरी तरफ देखते हुए कहा कि क्या तुम खाना बनाने का काम करोगी। मैंने अनिल से कहा क्यों नहीं यदि उसके लिए मुझे अच्छे पैसे मिल जाएंगे तो क्यों नहीं बनाऊंगी और इसी के साथ संतोष और अनिल ने खाना शुरू किया। संतोष के चेहरे को देखकर लग रहा था कि उन्हें खाना बहुत पसंद आया और जब वह खाने की टेबल से उठे तो अपनी उंगलियों को चाट रहे थे उन्होंने कहा आज तो खाने का मजा ही आ गया ऐसा खाना खाये तो जमाना हो चुका है। संतोष हमारे घर से रात के 11:00 बजे गए। संतोष कुछ समय बाद पटना गए हुए थे जब वह पटना ज रहे थे तो कहने लगे कल्पना जी क्या आपके घर पर भी जाना है? मैंने उन्हें कहा हां आप मेरे घर पर मिठाई ले जाइएगा। मैंने संतोष को कुछ पैसे दिए लेकिन वह कहने लगे अरे आपके यह पैसे रहने दीजिए। उन्होंने मुझसे पैसे नहीं लिए और वह कुछ दिनों के लिए पटना चले गए। मेरी मां का मुझे फोन आया वह कहने लगी बेटा संतोष घर पर आए थे उन्होंने हमें मिठाई दे दी थी मैंने मेरी मां से आधे घंटे तक बात की क्योंकि घर के कामकाजो से फुर्सत ही नहीं मिल पाती थी इसलिए मां से बात ही नहीं हो पाती थी। संतोष कुछ दिनों बाद पटना से वापस लौट आए जब वह आए तो उन्होंने मुझे कभी आप मेरे घर पर आईए। मैं उनके घर पर चली गई उनके घर पर जब मैं गई तो सामान अस्त-व्यस्त पड़ा था।

वह मुझे कहने लगे अकेले रहने का यही नुकसान होता है मैंने उन्हें कहा मैं ठीक कर देती हूं। वह कहने लगे कोई बात नहीं आप रहने दीजिए जब मैं संतोष के बाथरूम में गई तो मैंने देखा वहां पर कंडोम का पैकेट पड़ा था। उस कंडोम के पैकेट को देखकर मेरा मन भी सेक्स करने का होने लगा क्योंकि अनिल के साथ मेरे सेक्स संबंध बन नहीं पाते हैं अनिल का पेट सेक्स के आड़े आ जाता है इसीलिए मैंने संतोष के साथ सेक्स करने का मन बना लिया था। संतोष को मैं अपने स्तनों से रूबरू करवा रही थी वह भी मेरे स्तनों की तरफ नजर गाड़े हुए थे आखिरकार उनका मन भी मेरे साथ संभोग करने का हो गया। उन्होंने मुझे कहा कल्पना जी आज आपने मेरे अंदर से सेक्स की भावना को जागृत कर दिया है यह कहते ही उन्होंने मेरी जांघ को सहलाना शुरू किया। जब उन्होंने मेरे स्तनों को अपने हाथों से दबाना शुरू किया तो मैं पूरी तरीके से मचलने लगी और मैं पूरे जोश में आ चुकी थी।

जैसे ही संतोष ने मेरी साड़ी को उतार कर मेरे ब्लाउज के हुक को खोलना शुरू किया तो मैंने उन्हें कहा आराम से खोलिए मुझे दर्द हो रहा है। उन्होंने मेरे ब्लाउज को उतार दिया था और जब उन्होंने मेरी ब्रा को उतारा तो मैंने संतोषी से कहा मेरे स्तनों को चूसिए ना। वह मेरे स्तनों को बड़े अच्छे से चूस रहे थे संतोष कहने लगे कल्पना जी आपका बदन तो घोड़ा लाजवाब है। यह कहते हुए उन्होंने मेरे दोनों पैरों को चौड़ा किया और अपने लिंग को मेरी योनि के अंदर धीरे धीरे डालने लगे जैसे ही मेरी चूत की दीवार से उनका लंड टकराने लगा तो मेरे मुंह से तेज चीख निकल पडी अब संतोष ने अपनी गति पकड़ ली थी। संतोष ने मेरे दोनों पैरों को खोल लिया और मेरी योनि के अंदर बाहर अपने लंड को करने लगे मुझे बड़ा आनंद आ रहा था और संतोष भी खुश थे। काफी देर तक ऐसा ही चलता रहा जिससे कि मेरे अंदर उत्तेजना में बढ़ोतरी हो गई थी और मैं भी बहुत ज्यादा खुश थी। काफी देर तक संतोष ने मेरी योनि के भरपूर तरीके से मजे लिए जब मेरी योनि से पानी बाहर की तरफ गिरना शुरू हो गया तो संतोष ने भी मेरी योनि के अंदर अपने वीर्य को गिरा दिया।