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HOT Free XXX Hindi Kahani
मुझे अभी अभी की कुछ दिन पहले नोंन वेज स्टोरी के बारे में पता
चला है. मैं तो यहाँ की मस्त मस्त कहानी पढकर खूब मजे कर रहा हूँ. मेरी
कांता भाभी जो हमेशा लैपटॉप पर सर्फिंग करती रहती है, मैंने उनको इस साईट
के बारे में बताया.
भाभी! तुमसे इस साईट की मस्त मस्त कहानी पढ़ी क्या ?? मैंने कांता भाभी से पूछा
नही तो देवर जी !! वो प्यार से बोली
अरे भाभी !! एक बार पढके देखो तो. मौज आ जाएगी. अगर तुमको मजा नही
आया तो मैं अपनी मूछ मुड़वा दूंगा और सर के बाल भी छिलवा दूंगा! मैंने भाभी
से कहा. मेरे कहने पर भाभी सेक्सी स्टोरी पढ़ने लग गयी. कुछ देर बाद उनको
मौज आने लगी. मैंने उनके कमरे से बाहर आ गया. खिड़की से उनको ताड़ने लगा.
कांता भाभी पर चुदाई कहानी का पूरा जादू चल गया. दोस्तों, इस समय दोपहरिया
थी. गर्मी के मौसम में कैसी दिल्ली में गर्म गर्म लू चलती है, ये तो आप सभी
दिल्ली वाले तो अच्छे से जानते होगे. इस वक़्त मेरे घर में सिर्फ मम्मी,
भाभी और मैं ही थे. पापा और बड़े भैया अपने काम पर गये थे. मैं बाहर खिड़की
के सीसे से अपनी मस्त मस्त भाभी को ताड़ रहा था. कुछ देर बाद चुदास वाली
कहानी ने अपना जादू दिखाना शुरू कर दिया.
भाभी ने एक बार दरवाजे की तरफ देखा की कहीं अनिभव तो आस पास नही
है. फिर उन्होंने अपना पेटीकोट और साडी जरा सा उपर कर ली और चूत में
उन्होंने अपना हाथ डाल दिया. कांता भाभी अपनी चूत में ऊँगली करने लगी. खुद
अपनी चूत को ऊँगली से चोदने लगी. वो फर्श पर बैठी थी. गर्मियों को फर्श तो
वैसे ही ठंडा होता है और राहत पहुचाता है. कांता भाभी ने अपना लैपटॉप अपने
सामने ही फर्श पर रख लिया था. मस्त चुदाई वाली कहानी पढ़ती जा रही थी.
बिलकुल सावधान होकर चुदास वाली कहानी की एक एक लाईन भाभी पढ़ रही थी. और जोर
जोर से अपनी मस्त मस्त बूर में ऊँगली कर रही थी.
फ्रेंड्स, मेरी तो इस दोपहरिया में किस्मत ही खुल गयी थी. मैंने
कांता भाभी को देखते हुए कितनी बार सडका मारा था, मुठ मारी थी. पर आज तो
भाभी अपनी मुठ मार रही थी. दोस्तों, आज इस दोपहरिया में मेरा नसीब जाग गया
था. गोरे गोरे फूले फूले गालों वाली कांता भाभी जल्दी जल्दी अपनी साड़ी और
पेटीकोट को उठाकर चूत में ऊँगली दे रही थी. उनके दोनों हाथों की नीली
चूड़ियाँ खन्न खन्न की आवाज कर रही थी. ये सब देख के मेरा लौड़ा खड़ा हो गया
था. मैं वहीँ खिड़की के काले कांच के पीछे छिपा रहा. भाभी मुठ मारती रही.
कुछ देर वो झड गयी. उन्होंने जल्दी जल्दी बिजली की गति से अपनी चूत में
ऊँगली करना शुरू कर दिया. मैं जान गया की भाभी झड़ने वाली है. फिर अचानक से
१०० १५० बार जल्दी जल्दी अपने भोसड़े में ऊँगली देने के बाद भाभी ने अपना
पेटीकोट उपर उठा दिया. उनके लाल लाल मस्त मस्त भोसड़े से पिच पिच करके उनका
माल निकला और सीधा उनके लैपटॉप पर जाकर गिरा. जहाँ फर्श पर वो बैठी थी,
वहीँ लैपटॉप सामने रखकर मुठ मार रही थी. पर कांता भाभी को इसका पछतावा नही
हुआ. लैपटॉप पर उनकी मस्त लाल लाल बुर से ८ १० बार अपना पानी पिचकारी के
रूप में छोड़ दिया.
फिर आपनी चूत को सहलाने लगी. अपना माल झाड़ने के बाद वो वो बेहद
चुदासी लग रही थी. उनकी उँगलियाँ थी की राजधानी ट्रेन. अब भी रुकने का नाम
नही ले रही थी. मैंने ये सब देखकर अपना लौड़ा सुहरा रहा था. दोस्तों कांता
भाभी को चुदाई वाली कहानी का ऐसा चस्का लग गया की अब वो हर रोज दोपहरिया
में कहानी पढ़ने लगी. मैं उनको रोज कहानी पढ़ते देख लेता. एक दिन ऐसी की
गर्मी की मई महीने की दोपहरिया थी. बाहर साएँ सांये करती लू चल रही थी.
मौसम तो बड़ा ख़राब था. इस दोपहरिया में घर से निकलने वाला नहीं था. मैं अपने
कमरे में बैठा पढ़ रहा था. जब बोर हो गया तो सोचा की जरा एक गिलास ठंडी
ठंडी पेप्सी गले से नीचे उतार लूँ. बाहर मैं गैलरी से किचन की ओर जा रहा
था, रास्ते में कांता भाभी का कमरा पड़ा. मैंने कुछ देखा तो मेरा लौड़ा खड़ा
हो गया.
कांता भाभी पूरी तरह से नंगी थी. उपर ब्लौस तो निकाल रखा था. गोरे
गोर चुदासे जिस्म वाली कांता भाभी ने तो अपना ये खुला रूप दिखाकर मेरी माँ
चोद के रख दी. उनको गर्मी बहुत लगती है ये बात उन्होंने मुझे बताई थी. बिना
पंखे कूलर ऐ सी के भाभी का गुजारा नही होता है. ये बात तो मैं अच्छे से
जानता था पर ये नही जानता था की इतनी गर्मी उनको इस दोपहरिया में लग जाएगी
की ब्लौस और साडी ही निकाल देंगी. ये सब देखके तो दोस्तों, भाभी पर मेरी
नियत ख़राब हो गयी. मुझको अपनी आँखों पर विस्वाश नही पड रहा था. कांता भाभी
पूरी तरह से नंगी थी. पीठ के बल ठन्डे फर्श पर किसी कुतिया की तरह दोनों
टाँगे फैलाकर पड़ी थी. सामने उनका लैपटॉप था. वो वही चुदाई कहानी मजे से पढ़
रही थी. आँखें तो उनकी लैपटॉप से चिपकी थी. और अपने दोनों पके पके पपीतों
को वो हाथ में लिए हुई थी. मीठे मीठे ताजे पके पपीतों को वो हाथ में लेकर
खुद अपनी जीभ से चाट रही थी. दोस्तों, ये सब मैंने देखा तो १ सेकंड में
मेरी माँ चुद गयी.
अपना काम बनता, माँ चुदाऐ जनता! वाली तर्ज पर पर मैंने सोचा की अब
चाहे परिवार में मार क्यूँ ना हो जाए, पर मैं अपनी भाभी को आज इस मस्त मस्त
दोपहरिया पर चोदूंगा जरुर. मैंने फिर बाहर से अंदर उनके कमरे की ओर तो वही
दृश्य था. कांता भाभी कमरे के ठन्डे फर्श पर किसी देसी कुतिया की तरह लेती
थी. उनके लम्बे लम्बे बाल खुले थे. उनकी नजरें लैपटॉप से चिपकी थी. भाभी
चुदाई कहानी पढ़ने का मजा ले रही थी. दोस्तों, मैं खुद को रोक न सका. धड़ाम
से मुँह उठाकर मैं उनके कमरे में चला गया.
सायद वो मुझे देख नहीं पायी.
भाभी? मैंने कहा.
अरे देवर जी !! कांता भाभी के मुँह से निकला. हाय आज तो गजब हो
गया. उनके जवान देवर ने उनको सेक्सी कहानी पढ़ते देख लिया. भाभी का चेहरा फक
हो गया. सारी लाली सारी रंगत चेहरे से १ सेकंड में उड़ गयी. वो उठ बैठी
हड़बड़ी में तो उनकी लात लैपटॉप में लगी. वो खट की आवाज करता बंद हो गया.
कांता भाभी पास पड़े अपने ब्लौस को उठाने के लिए लपकी तो मैंने लपक पर ब्लौस
उठा लिया. वो चौंक गयी. इससे पहले तो खड़ी होती मैं उनके बगल बिजली की
रफ्तार से बैठ गया. मैंने नंगी नंगी चुदासी मस्त लाल लाल बदन वाली भाभी को
दबोच लिया.
देवर जी ! ये सब क्य़ा…..??? उनके मुँह से डर और हताशा से निकला ही
था की मैंने भाभी के जस्ट बगल में उनको पकड़ के लेट गया. उनको मैंने सीने से
लगा लिया. हम दोनों चुदसे देवर भाभी जमींन पर फर्श्स पर लोटने लगा. मैंने
अपने होंठ भाभी के होठ पर रख दिए. उनको एक शब्द न बोलने दिया. हम दोनों
जमींन पर गोल गोल लोट रहे थे. मैं उनको नही बोलने दे रहा था. भाभी का
खरबूजे जैसे लाल लाल बेहद गोरे बदन को मैंने अपनी बाहों में भर लिया था.
कुछ देर तक मैं उनको होंठ को पीता रहा. १० १५ मिनट तक मैंने उनको कुछ नही
कहने दिया. कांता भाभी जान गयी की आज उनको देवरजी चोदेंगे, पेलेंगे खाएंगे.
वो ये सब अच्छे से जान गयी. मैं उनकी मद्धिम मद्धिम भीनी भीनी गर्म गर्म
सासों को सूंघता रहा. नंगी नंगी कांता भाभी मैंने खुद में दबोच रखा था. वो
चाहकर भी मुझसे बच के नहीं भाग सकती थी.
मैं उनके रसीले संतरे जैसे होंठों को पीना जारी रखा. कुछ देर बाद
वो गर्म हो गयी. खुद वो चुदने को तयार हो गयी. ‘पर देवर जी! मैं तो आपकी….’
कुछ भाभी ने फिर से बोलना चाहा. पर फिर से मैंने उनके होठ को अपने होंठों
में ले लिया और पीने लगा. कुछ देर बाद भाभी जान गयी की उनका देवर उनको चोद
के रहेगा. आज इस भीषण गर्मी वाली दोपहरिया में इस ठन्डे ठन्डे फर्श पर उनका
देवर आज उनकी चूत को मारके रहेगा. ये बात कांता भाभी अच्छे से समझ गयी थी.
कुछ अन्तराल बाद उन्होंने खुद सरेंडर कर दिया. कुछ देर बाद वो सीधी गाय हो
गयी. मैंने करवट ली तो वू निचे और मैं उनके उपर आ गया. मैंने उनकी छाती
में मुँह में किसी लोमड़ी की तरह भर लिया. उनकी छाती को मैं खाने लगा और
पीने लगा. आज दोपहर में ये २ दूध से उफनती छातियाँ ही मेरा लंच थी. ऊओहो उफ़
भाभी के मम्मे क्या जबरदस्त क़यामत थे. बड़े बड़े चकोतरे जैसी उपर से चोकलेट
क्रीम की गोल गोल सतह. मैं अपनी सगी भाभी के दूध पीने लगा तो दोस्तों मुझे
मौज आ गयी.
अपनी दोनों आँखें मीचकर मैं छाती पीने लगा. हाथ से दबा दबाकर जैसी
लोग चौसा आम दबा दबा कर खाते है, ठीक उसी तरह मैं उनकी दोनों छातियों को
हथेली से दबाता था और पीता था. जरा जरा सा दूध उनकी छाती की निपल्स से निकल
आता था. मैं उनको गंगाजल समझ के पी जाता था. भाभी शर्म से लाल थी. ‘अरे
भाभी! भाभियाँ तो देवर से चुदती ही है ! क्यूँ दिल पर लेती हो ?’ मैंने कहा
और फिर से उनकी छातियाँ पीने लगा. बड़ी देर ये खेल चला. मेरी मम्मी भी अपने
कमरे में सो रही थी. हम देवर भाभी को कोई रोकने वाला नही था. मैंने उनके
दोनों पैर खोल दिए. हल्की हल्की झांटों से भरी गहरी भूरी मलाईदार कांता
भाभी के बुर के दर्शन हो गये. मैं बिना १ सेकंड की देरी किये उनका बड़ा सा
भोसडा पीने लगा. भाभी मचल गयी. फिर से अपने पके पके पपीते पीने लगी. जैसा
वो कुछ देर पहले कर रही थी.
मैं इधर नीचे उनका मस्त मस्त मलाईदार भोसडा पी रहा था. बड़े भैया ने
भाभी को खूब पेला खाया था. खूब चोदा खाया था. मैंने ऊँगली से भाभी का
भोसड़ा खोल के देखा तो बड़ा सुराख़ मिला. मैं अपनी जीभ भाभी की बुर के छेद में
डालने लगा तो कांता भाभी मचलने लगी. बार बार अपनों दोनों जांघें सिकोड़ने
लगी. ‘हट मादरचोद!! अपना भोसड़ा पीने दे. हट हरामजादी !! अपनी चूत पिला’
मैंने भाभी को डाट दिया. कांता भाभी ने अपनी दोनों गोरी जांघें फिर से खोल
दी. कुछ देर बाद मैंने अपना लौड़ा उनके भोसड़े में सरका दिया और अपनी सगी
भाभी को चोदने लगा. कान्ता अभी भी अपने पके पपीतों को चाट रही थी. मैं उनको
ठोंक रहा था. कुछ डर बाद मैं उसको उसी तरह पेलने लगा जैसे देसी कुत्ते
देसी कुतियाँ को घपाघप चोदते है. भाभी पुरे मजे मार रही थी. धीरे धीरे
मैंने अपने लौड़े का तीसरा और चौथा गिअर भी लगा दिया. पक पक करके अपनी सगी
भाभी को मैं लेने लगा. ऊई माँ!!! हाय दैय्या !! देवर जी!! आज तो तुमने मुझे
देसी रंडियों की तरह चोदा है !! भाभी सिसकारी लेते हुए कहने लगी.
ले छिनाल!! ले ले !! आज रंडियों की तरह तेज रफतार में लौड़ा खा ले!!
ले ले कुतिया!! मैंने उनके नंगे गोरे चिकने कंधों को काटकर कहा और घपाघप
कांता भाभी का भोसदा फाड़ने लगा. इस दोपहरिया में ठन्डे फर्श पर भाभी की
पातालतोड़ चुदाई और ठुकाई की मैंने. चुदती आँखें झुकाई भाभी का सौन्दर्य
देखते ही बनता था. कितनी मासूम, कितनी सुन्दर, कितनी सीधी थी वो. मैं उनको
ले रहा था, खा रहा था, उनका भोसड़ा गच गच फाड़ रहा था और उपर नीचे फर्श पर
सरकती भाभी के चेहरे की रंगत और उनकी ब्यूटी को मैं निहार रहा था. कुछ देर
बाद मैं उनके भोसड़े में ही झड गया. उनकी चूत ने मेरे लौड़े को कस लिया.
कांता भाभी और मैं उनका देवर दोनों ही जल्दी जल्दी गहरी गहरी सासें भरने
लगे. मई महीने की इस दोपहरिया में हम देवर भाभी का चुदाई समारोह सम्पन्न हो
गया. दोस्तों, आपको कहानी कैसी लगी, अपनी कमेंट्स कामुक स्टोरी डॉट कॉम
डॉट कॉम पर लिखना ना भूलें.
भाभी की चुदाई, कांता भाभी को कुतिया बना कर चोदा, चुदाई की
कहानी, भाभी की चुदाई, भाभी देवर सेक्स, भाभी की सेक्स कहानी हिंदी में,
मस्त कुतिया की तरह सेक्स