मेरे जन्मदिन का कामुक तोहफा

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मेरा नाम सुरीली है और मै एक बैंक काम करती हु | मै अपने परिवार के साथ रहती हु | मैने अभी शादी नहीं की है; क्योकि, मै समलैंगिक हु | मै समलैंगिक कैसी बनी वो मै आज आपको बताना चाहूंगी | मेरा बैंक एक काम्प्लेक्स मे था और वहा पर और भी ऑफिस थे |

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 लंच के टाइम पर मे एक ढाबे पर खाना खाती थी | मै दिखने मे इतनी सुंदर तो नहीं हु, लेकिन, मेरी फिगर अच्छी है और मै जींस मे काफी अच्छी लगती हु | वहा ढाबे पे मेरी जैसी काफी लड्किया आती थी | उनमे से एक लड़की स्वाति से मेरी दोस्ती हो गयी | वो मेरे हे काम्प्लेक्स के एक ऑफिस मे काम करती थी और वो काफी सुंदर थी और काफी लड़के उसके आसपास मंडराते रहते थे | लेकिन, वो किसी को घास तक नहीं डालती थी | इसका कारण मुझे बाद मे पता लगा; कि, वो समलैंगिक थी और उसे सिर्फ लड्किया पसंद थी |हमारी दोस्ती काफी गहरी हो गयी और हम दोनों ने एक दुसरे के साथ काफी वक़्त बिताना शुरू कर दिया | मै ऑफिस कार से जाती थी और उसका रूम मेरे घर से बैंक के रास्ते मे ही पड़ता था | वो, अकेले रहती थी | उसके माँ-बाप नहीं थे और वो अपने काका-काकी के यहाँ बड़ी हुई | जब उन्हें वो बोझ लगने लगी, तो उसने दुसरे शहर मे नौकरी करने लगी | स्वाति को मेरे घर आना काफी अच्छा लगता था और मेरे घरवाले भी उसे मेरी तरह ही प्यार करते थे | शनिवार और रविवार को हम दोनों की ही छुट्टी होती थी; तो, कभी वो हमारे यहाँ और कभी मै उसके रूम मे चली जाती थी |मै जब भी उसके यहाँ जाती थी तो उसको पहले बता देती थी | इस बार मेरा जन्मदिन था और मैने उसको अभी तक बताया नहीं था | उसको लाख पूछने पर भी मैने उससे इस बार का प्रोग्राम नहीं बताया | उसको, मैने उसके घर छोड़ा और अपने घर चली गयी | रात को अचानक से, मै उसके घर जा धमकी | वो, मुझे देख के हैरान रह गयी | जब, मै अन्दर घुसी, तो देखा उसका सारा कमरा गन्दा पड़ा हुआ थी और उसके लैपटॉप पे एक ब्लूफिल्म चल रही थी | उसकी ब्रा पेंटी एक साइड मे पड़ी थी और एक डंडे जैसा कुछ पलंग पर पड़ा था |मुझे देखकर वो सकपका गयी और जल्दी-जल्दी सामान समेटने लगी | लेकिन, तब तक मे उस रंगीन डंडे को अपने हाथ मे ले चुकी थी | मैने स्वाति को अपने जन्मदिन के बारे बताया और उससे पूछा, ये क्या है ? वो बोली, ये सब मज़े का सामान है | मैने कहा मतलब, फिर उसने मुझे एक समलैंगिक लडकियों की ब्लू फिल्म दिखाई | वो, फिल्म देखकर मुझे कुछ होने लगा और मेरी साँसे गरम होने लगी | स्वाति को तो जैसे इसी बात का इंतज़ार था और उसने अपने होठ मेरे होठो पर रख दिये और चूमने लगी | मेरा सारा ध्यान फिल्म पर था | स्वाति ने मुझे लिटा दिया और एक-एक करके मेरे कपडे खोलने शुरू कर दिये | मै पूरी तरह से गरम हो चुकी थी और स्वाति की किसी हरकत का विरोध नही किया |फिर स्वाति ने मेरे चूचो को चुसना शुरू किया और उनको बड़ी बेरहमी से दबाने लगी | मुझे मज़ा आ रहा था और मै अजीब-अजीब सी और मस्ती से भरी हुई कामुक आवाज़े निकाल रही थी | फिर, उसने अपनी उंगुली से मेरी चूत के उपरी हिस्से को रगड़ना शुरू किया | मेरी तो जान ही निकल गयी | मुझे मज़ा आने लगा था और मेरी आँखे बंद होने लगी थी | जब मैने आँखे खोली, तो, देखा स्वाति एक हाथ मेरी चूत मे डाल कर मुझे चोद रही थी और दुसरे हाथ से खुद को चोद रही थी | हम दोनों ही मस्ती मे आवाज़े निकाल रही थी और मज़े लूट रही थी |

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थोड़ी ही देर मे, मुझे अंदर से कुछ बाहर आता महसूस हुआ और झटके के साथ एक सफ़ेद पानी की पिचकारी बाहर आ गयी | स्वाति भी झड चुकी थी |मेरा पूरा शरीर निढाल हो चुका था और मै नंगी ही पलंग पे लेट गयी और स्वाति भी मेरे ऊपर आ कर लेट गयी | रात को १२ बजे से पहले स्वाति और मैने फिर से चुदाई का प्रोग्राम किया और मेरा जनादीन मनाया | इससे अच्छा तोहफा क्या हो सकता था |