भसुर की परछाई न पड़े पर लंड चाहिए [भाग1]

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हेलो भाइलोग, मतलब भइया लोग, मैं हूं शालिनी, और बताते हुए शरम तो आ रही है पर क्या कहूं, मुझे लंड का चस्का है। जैसे ही जवान हुई, बाली उमर में बेदर्द जमाने ने मुझे लंड देकर कच्ची कली से फूल बना डाला। मेरे सारे छेदों में कुछ न कुछ घुसा डाला। हद्द तो तब हो गयी जब मेरे अपने रिश्तेदारों ने जो कि नजदीकि हुआ करते थे, जैसे कि फूफा जी, मौसा जी, मामा जी, जीजा जी, सबने मुझे भोगा। हद तो इस बात की है कि मेरे सगे भाईयों ने भी मुझे न छोड़ा।

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लंड का चस्का बुरी चीज है, लग जाने पर खतम नहीं होता और खतम न हो तो घातक भी होता है। इसलिए मैने देखा कि जब मेरा विवाह हुआ तो मुझे एक बार ऐसा लगा कि रोज पति के साथ सो सो कर मेरा मन भर जाएगा, अब मुझे अनेक लोगों पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। पर अफसोस, सुहागरात को मिंया की पोल खुल गयी, साहेब एकदम निरे बुद्धू और कमजोर निकले। थोड़ा भी अनुभव नहीं और मरियल सा लंड। जरा सी देर में गीले हो गये। हद्द किस्मत की, जिसको पतुरिया बनाना होता है बनाके छोड़ती है। मैने अपनी तकदीर में अनेक लंडों से छुटकारा पाने का कोई चांस न देखा।

और आखिर में एक सप्ताह में प्राइवेट कम्पनी में काम करने वाले मेरे पति मुम्बैई चले गए। मैने अपनी तकदीर का रोना छोड़ कर घर के कामकाज में मन लगाने की कोशिश की पर मेरा ध्यान अपने विधुर भैंसुर अजय जी की तरफ चला जाता। बेचारे हट्टे कट्टे, गबरु 40 साल के नये आदमी थे पर बीबी के बाद उन्होंने दूसरी शादी न की। अकेले अपने कमरे में पढते लिखते और कसरत करते। उनका शीशे जैसा चमकता कसरती बदन लन्गोट कसा बड़ा लंड उपर से उभरा हुआ कभी कभी मैं छुप के देख लेती और फिर मेरा मन ललच जाता।

तकदीर का रोना छोड़ कर मैने उनको फन्साने की सोची। घर में बुड्ढे सास ससुर, अजय जी और मैं थे। मम्मी पापा को दाना पानी से मतलब था। खाने का सामान, खरीदारी अजय जी करते और सामान लाकर रख देते घर में। मैं उनसे बोलती नहीं थी क्योंकि हमारे यहां भसुर की परछाई भी पडना पाप के बराबर माना जाता है। पर मेरे मन में जो साजिश चल रही थी उसके अनुसार मैं उनको जल्द ही फांसने वाली थी। उस रात जब मम्मी पापा सो गये तो मैं आंगन में आकर बैठ गयी, उनके कमरे के बाहर और पेट पकड़ के कराहने लगी – आह्ह आअह्ह्ह आह्ह्ह,

ये एक नाटक था, अजय जी कमरे से निकले और बोले – क्या हुआ शालिनी, तुम ठीक तो हो,

मैने कहा पेट में बहुत दर्द है। अजय जी घबराए और बोलने लगे, इतनी रात को तो कोई साधन भी नहीं है, तुम कमरे में आराम करो जाकर सुबह देखते हैं, मैंने उठने की कोशिश की पर जान बूझ कर गिर गयी। उन्होने अपने बलिष्ठ हाथों में मुझे उठाया और उठा कर मेरे कमरे में ले गये। मुझे खाट पर लिटा कर मेरा माथा सहलाने लगे। मैने जान बूझ कर अपना पल्लू नहीं संभाला था और ब्लाउज के दो बटन पहले से खोल रखे थे। नीचे कोई ब्रा नहीं थी और मुझे पता था कि अजय जी के अंदर का आदमी जग रहा होगा।

भसुर को लंड हेतु फांस लिया बीमारी का बहाना बना कर

उन्होंने मुझे झकझोरा और मेरे चूंचे हिलने लगे। हिल के दोनों ब्लाउज से बाहर आ गये। चूंकि मैं लंड की प्यासी और चुदवासी जनम जनम की रही हूं इसलिए मैं अपने मन में चुदने की चाहत लिए थी और कामवासना से मेरे चूंचे पहले से ही सख्त हो रहे थे। मैने अपनी सांसों को तेज होने दिया और अचानक से घबराते हुए बोली ‘ सीने में दर्द हो रहा है’ और फिर अपनी गर्दन लुढका ली। अजय जी, फंस चुके थे, अब जाएं तो कहां जाएं, उन्होंने हल्के से मेरे स्तनों को डरते डरते छुआ। उनके मजबूत हाथों की छुअन मेरे मन को सिहरा गयी। उन्होंने उन्हें पकड़ा और मेरे हृदय की गति नापने के लिए अपने कानों को मेरे स्तनों के करीब ले गये। मैने उनका माथा पकड़ लिया, घबराते हुए और बोली, बहुत धड़क रहा है, लगता है मेरा दिल बाहर आ जाएगा, मुझे बचा लीजिए भैया जी। और उनके सिर को अपने स्तनों के बीच दबा लिया। अजय जी अवाक थे।

हालांकि उनके लंड में अब ऐसे हालात में ऐंठन होने लगी थी। वो देख रहे थे कि शालिनी के चेहरे पर बीमारी के कोई खास लक्षण नहीं थे पर हो सकता हो यह मानसिक अव्यवस्था हो। उन्होंने धोती के अन्दर अपने विशालकाय लंड को, जो कि अपने स्थान से बढकर काफी आगे नाभि तक खड़ा हो चुका था, उसे दबोच कर अंदर छुपाया, और शालिनी की दिल की धड़कन सुनने लगे। वाकई वह तेज हो चली थी। सवाल यह था कि अगर यह धड़कन तेज थी तो क्या बिमारी के चलते थी या, फिर उत्तेजना के, पर अब चूंचे के बीच दबे होने के चलते उनकी मानसिक स्थिति अनियंत्रित हो रही थी।

उन्होंने अपनी गर्दन उसके स्तन पर और दबाई और अपना हाथ उसके पेट पर ले गये। चिकना मलमल सरीखा पेट। उसपर उंगलियां फिसलाते हुए नाभि के पास खुद चली गयीं। वहां ले जाकर बोले कि क्या ‘यहां पेट में भी दरद हो रहा है’

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शालिनी ने अपने हाथ से उनके हाथ को पकड़ा और अपना पेट सहलाने लगी। उसको चुदास जोर से चढ रही थी, पर वह चाहती थी कि पहल भसुर जी करें जिससे कि उसकी इज्जत उनकी नजरों में गिरे नहीं। उनके हाथ को पकड़ के अपने पेट पर सहलवाने की कोशिश करती हुई शालिनी उनके प्रचंड लंड के बारे में सोच रही थी जो कि उनके लंगोट में विशाल रुप से उभरा रहता था। आज यह मौका वह अपने हाथों से जाने न देना चाहती थी। उसके नग्न स्तनों में भसुर का चेहरा दबा हुआ था। धुक धुक करता दिल और तेज चलती गरम सांसें दोनों जिस्मों को पिघला रही थीं। इस घड़ी में न जाने क्यों उसे अपने वासना पर इतना अभिमान हो चला कि उसने अपने भसुर का हाथ जो अब तक उसके पेट पर दर्द तलाश रहा था, उसे पकड़ कर अपनी पेटीकोट के नाड़े के नीचे सरका दि्या। इस उत्तेजक कहानी का अगला भाग पढें भाग दो में अगले दिन प्रकाशित। लंड थाम के बैठें भसुर और भवह की इस कहानी में।