आंटी ने २६ बार लंड लिया (Aunty ne 26 baar lund liya mera)

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लोग जो कहते हैं कि जवानी सब पर निखार लाती है, सच कहते हैं. तब मैं १८ साल का था. जिस्म में खून उबाल मारता था, बहुत खेल-कूद करता था, कसरत करता था, मन में जोश था और औरत के जिस्म को जानने की बहुत इच्छा थी. ऐसा नहीं था कि मैं दिनभर यही सोचा करता था, लेकिन किसी औरत का जिस्म देखते ही मैं नज़र हटा नहीं पाता था, और मेरा सामान खड़ा हो जाता था. मैं ना ही बहुत अच्छा दिखता था, और ना ही ख़राब. एकदम साधारण सा. सिर्फ कसरत करनें के कारण शरीर थोड़ा अच्छा था. इसीलिए मैं सोच भी नहीं सकता था कि कोई लड़की मुझे पसंद करेगी. मेरे बहुत से दोस्तों नें लड़कियाँ पटा रखी थी, और अक्सर वे मुझे अपने अनुभव की कहानी सुनाते थे. मैं सिर्फ बेवकूफ की तरह सुनता था.

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लेकिन मेरा भी समय आया, और उम्मीद से परे. हमारे घर में अक्सर एक परिवार आता था. मैं उन्हें अंकल और आंटी कहता था. अंकल ४५ – ४६ के थे और आंटी ३५ की भी नहीं. अंकल नें काफी बाद में शादी की थी. आंटी का नाम काजल था. आंटी काफी खूबसूरत थी. वो अंकल और मुझ से भी लंबी थी. बाल बहुत घने और चूतड़ तक लंबे थे. रंग बहुत गोरा नहीं था, थोड़ा दबा हुआ, जिसे dark – complexion कहते हैं. पर सब से सुन्दर था आंटी का सीना और चूतड़, काफी भरा-भरा. इसपर उनके शरीर में थोड़ा चर्बी भी था, एकदम सटीक मात्र में, और इसलिए वो और भी मोहक लगती थी. एक और चीज थी जिससे नज़र हटाना मुश्किल था, और वह थी उनकी नाभी. बहुत गहरी और बहुत सेक्सी. पता नहीं क्यों मुझे ऐसा लगता था कि उस नाभी से सुगंध निकलता होगा, और जिसे सूंघनें से मेरा जीवन धन्य हो जायेगा.

सो, ऐसी एक आंटी जब भी हमारे घर आती थी, मैं सब कुछ भूलकर नज़र बचाकर उन्हीं को देखा करता था. चूंकि तब मुझे संभोग का अनुभव नहीं था, मुझे लगता था कि मेरा सामान उनके शरीर पर फेरनें या टिकाने से ही शायद बहुत आराम मिलेगा. परन्तु मुझे मालूम था कि ऐसा कभी भी मुमकिन नहीं होगा. सो मैं अपना मन मार कर रहता. मैं सोचता था कि मेरा उनको चोरी-छुपे देखना कोई नहीं देखता था, लेकिन मेरा गलतफहमी जल्दी ही दूर हो गया.

वे गर्मी के दिन थे, अप्रैल का महीना था. परीक्षा हो चुका था. मैं दिनभर खेलता रहता था. एकदिन शाम के समय अंकल और आंटी आये. मैं भी हमेशा की तरह उनके साथ समय बिताने लगा. आंटी ने एक बड़ा टिफ़िन-डब्बा निकालकर हमको दिया, और कहा कि उसमें घर का बना केक है. केक ढेर सारा था, सो पूरा खाया नहीं गया. हमनें आंटी से कहा कि हम डब्बा बाद में लौटा देंगे.

तय अनुसार मैं दो दिन बाद साईकिल पर डब्बा लेकर आंटी को लौटनें चला. उनके दरवाजे पर जाकर कॉलिंग-बेल दबाया. थोड़े समय तक कोई आवाज नहीं आया. उसके बाद दरवाजा खुलनें पर मैंने जो देखा वह मेरे कल्पना से भी परे था. सामने आंटी खड़ी थी, सर से पाँव तक गीली, गीले बाल गीले बदन के पर लिपटे थे. शरीर पर सिर्फ एक गमछा लिपटा था और उस गीले, पारदर्शी गमछा में से आंटी का वह असामान्य सेक्सी शरीर और भी ज्यादा प्रकट हो रहा था. कुछ क्षणों तक मैं होशोहवास खोकर उनको देखता रहा, लेकिन अगले ही पल अहसास होने पर मैनें शर्म से नज़रें झुका ली. वैसे भी मैं उन्हें छुप-छुपकर देखता था, इसीलिए इस हालत में उन्हें सामने देखकर ऐसा लगा जैसे मैं पकड़ा गया.

मैं सर झुककर खड़ा रहा. मेरी हालत देखकर आंटी नें मेरे कंधे पर हाथ रखकर कहा, “अरे, इतना शर्मानें का क्या है? मैं तुम्हारी आंटी लगती हूँ ना. आ, अंदर आ.” मैं भीं आज्ञाकारी लड़के की तरह उनके पीछे-पीछे अंदर जा पहुँचा. आंटी नें दरवाजा बंद कर दिया. आंटी नें मेरे हाथों से डब्बा लेकर कहा, “तू बैठ, मैं आती हूँ.” आंटी के अंदर जाते समय गीले गमछे से ढका उनका उठा हुआ, विशाल गांड हिलनें लगा, और तुरंत मेरा डंडा खड़ा हो गया. ऐसा लगा जैसे वह मेरा पैंट फाड़कर बाहर आ जायेगा. मेरे कान गर्म हो गए. मैं मन-ही-मन दुआ करनें लगा कि आंटी मुझे इस हाल में ना देख ले. पर मैं जितना सोचता जाता था, वह और भी बड़ा होने लगा. और ठीक इसी समय मुझे चौंकाकर आंटी फिर वही गमछा पहन कर अंदर आ गई. आते ही साथ उनकी नज़र मेरे डंडे पर पड़ी. वह ना देखने का बहाना कर बोलने लगी, “तेरे अंकल शाम पाँच बजे घर आएंगे, तब तक मेरा कुछ काम नहीं रहता. अच्छा हुआ तू आ गया. मैं नहा रही थी. तू यहीं खाना खाकर जाना.” मेरे मुँह से हाँ-ना कुछ भी नहीं निकला. मैंने सिर्फ सर हिला दिया. आंटी थोड़ी हँसकर फिर गांड हिलाकर चले गयी.

मैं तकरीबन १५ मिनट ऐसे ही बैठा रहा. जितना भी मैं कोशिश करता था कि मन को हटाऊँ, उतना ही आंटी के दूध, चूतड़ और नाभी की याद आने लगती और मैं बेचैन हो उठता. अचानक अंदर से आवाज़ आई, “ए, एकबार अंदर आना ज़रा.” मेरे हाथ-पॉव फूल गए. इस हालत में मैं अंदर जाऊं कैसे? फिर उनका बुलावा आया. अब मैं मजबूर होकर पैंट में खड़े डंडे को लेकर ही अंदर के कमरे में जा पहुँचा. अंदर का नज़ारा देखकर मेरा साँस रुक सा गया. आंटी उसी गमछे में मेरी ओर पीठ कर एक ब्रा पहननें की कोशिश कर रही थी.

मेरे तरफ देखकर वह बोली, “मैं थोड़ी मोटी हो गई हूँ ना, इसीलिए पहननें में दिक्कत होती है. तू ज़रा हुक लगा दे तो.” मुझे घबराते देखकर वह फिर बोली, “अरे, शर्म किस बात की, तू मुझसे कितना छोटा है.” मैं हिम्मत जुटाकर धीरे-धीरे आगे बढ़कर काँपते हाथों से हुक लगनें लगा. तभी वह फट से मेरा हाथ कसकर पकड़ कर बोली, “क्यों रे, खूब तो मुझे चोरी-छुपे देखता था. क्या मैं नहीं जानती?” मुझे लगा की मैं मर ही जाऊँगा, मेरे पाँव काँपनें लगे. वह फिर बोली, “अरे बेवकूफ, क्यों डरता है? तूने अच्छा किया जो मुझे देखा. देख, मैं तुझे सच कहती हूँ. तेरे अंकल की उम्र हो गयी है, वे मुझे और खुश नहीं कर सकते. पर मैं तो अभी जवान हूँ. मुझे भी भूख लगती है. तू जब मुझे छुपकर देखता है, मुझे अच्छा लगता है. ले, अब जल्दी जो मन करे कर ले.”

मैं फिर भी खड़ा रहा. यह देखकर उन्होंने अपना गमछा उतार फेंका, ब्रा ना पहनकर दूर फेंक दिया और बाल खोल दिए. फिर मेरे पैंट के बटन खोलकर उसे उतार दिया. फिर एक हाथ से मेरे बालों को पकड़कर दुसरे हाथ से मेरे तने हुए डंडे को पकड़ा, और फिर एक अजीब तरीके से अपने गांड को मेरे लंड से सटा दिया. बस, मेरे सब्र का बाँध टूट गया. मैं पागलों की तरह उनके गांड को चाटनें लगा, शरीर को सहलानें लगा, गीले बालों और बगलों को सूंघनें लगा. लेकिन तजुर्बा ना रहनें की वजह से मैं समझ नहीं पाया कि मुझे आगे क्या करना है. वह अपने गांड को मेरे लंड पर और भी जोर से सटा दिया. मैं भी मौका पाकर उनके गांड पर लंड रगड़नें लगा.

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वह समझ गई कि मैं बिलकुल ही अनाड़ी हूँ. फिर वह मुझे खींचकर ले गई और बिस्तर पर टाँगें फैलाकर लेट गई. बोली, “ले, मेरे दोनों दूध को जोर-जोर से दबा और चूचियों को चूस.” मैं भी उनपर लेट कर वही करनें लगा. फिर वह मेरे लंड को पकड़ कर अपनें दोनों टाँगों के बीच में एक जगह में डाल दी. बस, मुझे कुछ और सिखाना नहीं पड़ा. मैं उन्हें बहुत तेज चोदनें लगा. वह भी अजीब सा चेहरा बनाकर आह-आह आवाज़ निकालनें लगी. लेकिन तीन-चार धक्कों के बाद ही मुझे लगा कि जैसे मेरे शरीर में तूफ़ान उठनें लगा और जैसे मेरे सामान से कुछ निकालनें की कोशिश में है. पहले मैं समझा कि मेरे पेशाब निकल आयगा, इसीलिए मैं रोकनें की कोशिश करनें लगा. परन्तु सब व्यर्थ. मेरे पूरे शरीर को हिलाकर कुछ निकालकर आंटी के शरीर में चला गया. आराम से मेरे मुँह से भी आवाज़ निकल आया.

आंटी समझ गई और मुझे दोनों टाँगों में कसकर बोलनें लगी, “निकलनें दे, निकलनें दे.” मैं पागलों की तरह उनके पूरे शरीर को चाटने लगा. थोड़ी देर बाद ही उन्होंने मुझे छोड़ दिया. कहा, “मैं पहले ही समझ गई कि तेरा पहला बार है, और इसीलिए तेरा अभी भी खड़ा है. ले, फिर अंदर डाल. देखना अब बहुत देर तक मज़ा ले पायेगा.” ऐसे कहकर वह अपनें लंबे बाल मेरे गले में लपेट कर मुझे फिर खींच लाई. अब वह बिस्तर पर जानवर की तरह टाँग फैलाकर उल्टा लेट गई. बालों को पीठ पर फैला दिया और मुझे करीब आने को कहा. मैं करीब आकर उनके गांड पर अपना लंड टिकाने पर वह एक अजीब तरीके से नीचे से हाथ बढाकर मेरा लंड पकड़कर फिर अपने छेद में डाल ली. फिर उन्होंने मुझसे कहा, “सुन, एक हाथ से मेरे बालों को खींचकर पकड़, और दुसरे हाथ से मेरा एक दूध दबा, और तेरे लंड से जितना ज़ोर से हो सके मुझे चोद.” मैं भी मशीन की तरह उनकी बात मानने लगा. पहली बार घबराहट में उतना समझ नहीं सका, पर अब लगा कि यह बहुत ही मज़ेदार है. मैं जी-जान से उन्हें चोदने लगा और वह भी कई तरह की आवाज़ें निकलनें लगी, और उससे मेरा जोश और भी बढ़नें लगा. अब मैं उनकी और भी अच्छी तरह से स्वाद लेनें लगा. उनके बालों को सूंघा, उनके बगलों को चाटा, उनको चूमा, उनके गांड को चाटा और उन्हें जबरदस्त चोदा. साफ़ समझ में आया कि वह भी बहुत मज़ा ले रही है. वह आँखें बंद कर मेरा मज़ा ले रही थी.

अब मैंनें पक्का २० मिनट तक किया. अचानक वह ज़ोर-ज़ोर से आवाज़ निकालकर काँपने लगी, और हाथ पीछे कर मेरे पैरों में नाखून गाढ़नें की कोशिश करनें लगी. आखिरकार वह ज़ोर से चीखकर बिस्तर पर निढाल हो कर गिर गई. अब मैं उन्हें सामनें से चोदने लगा. उन्होंने मुझसे सिर्फ एकबार कहा, “अपना माल छोड़” और सचमुच मेरा माल झड़ गया. हमलोग काफी देर तक लिपट कर लेटे रहे. बाद में उठकर, उनके साथ खाना खाकर, मैं घर जाने लगा. तब उन्होंने दबी हँसी में कहा, “मैं फिर केक दे आऊँगी, और तू डब्बा लौटने आना.” उसके बाद मैंनें उन्हें करीब २६ बार चोदा. अब वह बहुत याद आती है.

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